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नैष्कर्म्यसिद्धिः अस्मिन्सूत्रे उपन्यस्ते कश्चिचोदयति-योऽयं वाक्यार्थप्रतिपत्ती पूर्वाध्यायेनान्वयव्यतिरेकलक्षणो न्यायः सर्वकर्मसंन्यासपूर्वकोऽभिहितः किमयं विधिपरिप्रापितः, किं वा स्वरसत एवाऽत्र पुमान् प्रवर्तत इति ? किञ्चाऽतः ? शृणु। यद्यात्मवस्तुसाक्षात्करणाय विधिप्रापितोऽयं न्यायस्तदाऽवश्यमात्मवस्तुसाक्षात्करणाय व्यावृत्तशुभाशुभकर्मराशिरेकाग्रमना अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यथोक्ताभ्यामात्मदर्शनं करोति । अपरिसमाप्याऽऽत्मदर्शनं ततः प्रच्यवमान आरूढपतितो भवति । यदि पुनर्यदृच्छातः प्रवर्तते तदा न कश्चिद्दोष इति । विधिपरिप्रापित इति ब्रूमः यत आह ।
पूर्वपक्ष-इस प्रकार सूत्ररूप श्लोकसे उक्तविषयका प्रतिपादन करनेपर कोई कहता है कि 'यह जो पूर्व अध्यायमें वाक्यर्थ ज्ञानके लिए सर्वकर्म त्यागरूप संन्यासपूर्बक अन्वयव्यतिरेकरूप न्यायका प्रतिपादन किया, क्या वह विधिसे प्राप्त है ? किं वा स्वभावसे ही अर्थात् स्वयं ही पुरुष इस विषय में प्रवृत्त होता है ? यदि कहो कि इस प्रश्नका क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है ? सो सुनिए, यदि आत्मवस्तु साक्षाकार-करनेके लिए अन्बय व्यतिरेकरूप युक्तियोंका विचार करना विधिसे प्राप्त है, ऐसा कहो ! तब तो जिसने अात्मवस्तु के दर्शन के लिए सर्व कर्मों का त्याग किया है और मनको एकाग्र किया है, अवश्य ही वह जिज्ञासु पुरुष अन्वय व्यतिरेक द्वारा आत्मदर्शन कर सकता है। क्योंकि अात्मसाक्षात्काररूप फल-सिद्धि तक अनुष्ठान न करे तो (आत्मदर्शनको प्राप्त न होकर ) उससे भ्रष्ट होनेसे प्रारूढपतित हो जाता है । यदि यहच्छासे ही इन युक्तियोंका विचार करने में पुरुष प्रवृत्त होता है, ऐसा कहो तब कोई दोष नहीं है।
इस शङ्काका तात्पर्य यह है कि-अज्ञाननिवृत्तिरूप फल अदृष्ट नहीं, किन्तु प्रत्यक्ष है । अतएव उसका साधन जो ज्ञान है वह भी स्वयं विधान करने योग्य नहीं है और ज्ञान के साधन श्रवणादि भी अन्वय व्यतिरेकसे ही-स्वयमेव सिद्ध हैं । फिर विधि के न रहने पर जिसको ज्ञानकी इच्छा होगी, वह स्वयं श्रवणादिमें प्रवृत्त हो जायगा । अतएव शास्त्रीय विशिष्टाधिकारी कोई न रहा और यह बात भी शास्त्र प्रसिद्ध है कि वेद अधिकारीको ज्ञान उत्पन्न करता है । यहाँ विधि न होनेसे कोई शास्त्रीय अधिकारी न रहा. तब तत्त्वमस्यादि वाक्य किसको बोध करायेंगे । सुतराम् उसके व्याख्यान करने के लिए सूत्ररूप श्लोकका कहना व्यर्थ है ?
सिद्धान्त-विचार करनेपर प्रवृत्ति विधि प्रयुक्त ही है । क्योंकि