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मोक्षशास्त्र जीवादिकके थोड़े विशेष जाने था पीछे केवलज्ञान भए तिनके सर्व विशेष जानें परन्तु मूलभूत जीवादिकके स्वरूपका श्रद्धान जैसा छास्थके पाइए है, तैसा ही केवलीके पाइए है । बहुरि यद्यपि केवली, सिद्ध भगवान् अन्य पदार्थनिको भी प्रतीति लिये जाने है तथापि ते पदार्थ प्रयोजनभूत नाही । ताः सम्यक्त्व गुण विर्षे सप्त तत्त्वनि ही का श्रद्धान ग्रहण किया है । केवली सिद्ध भगवान् रागादिरूप न परिणमैं हैं। संसार अवस्थाकौं न चाहै हैं । सो इस श्रद्धानका बल जानना ।
बहुरि प्रश्न-~~जो सम्यग्दर्शनको तो मोक्षमार्ग कया था, मोक्ष विष याका सद्भाव कैसे कहिए है ?
ताका उत्तर-कोई कारण ऐसा भी हो है, जो कार्य सिद्ध भए भी नष्ट न होय । जैसे काहू वृक्षक कोई एक शाखाकरि अनेक शाखायुक्त अवस्था भई, तिसको होते वह एक शाखा नष्ट न हो है । तैसे काहू आत्माकै सम्यक्त्व गुणकरि अनेक गुण युक्त मुक्ति अवस्था भई, ताकौ होते सम्यक्त्व गुण नष्ट न हो हैं ऐसे केवली सिद्ध भगवानके भी तत्त्वाथे श्रद्धान लक्षण ही सम्यक्त्व पाइए है । तातें तहाँ अव्याप्तिपनौं नाहीं है।"
(मोक्षमार्ग प्र० पृ० ४७७ )
बहुरि प्रश्न-मिथ्याष्टिक भी तत्त्व श्रद्धान हो है, ऐसा शास्त्रविर्ष निरूपण है। प्रवचनसारविर्षे आत्मज्ञानशून्य तत्त्वार्थ श्रद्धान अकार्यकारी कहा है। तातै सम्यक्त्वका लक्षण तत्त्वार्थ श्रद्धान कह्या है, तिस विर्षे अतिव्याप्ति दूपण लाग है।
ताका समाधान-मिथ्यादृष्टिक जो तत्त्व श्रद्धान कह्या है, सो नामनिक्षेपकरि कहा है। जामें तत्त्व श्रद्धानका गुण नाही अर व्यवहारविष जाका नाम तत्त्व श्रद्धान-कहिए, सो मिथ्यादृष्टिक हो है। अथवा आगमद्रव्यनिक्षेपकरि हो है । तत्त्वार्थ श्रद्धानके प्रतिपादक शास्त्रनिको अभ्यास है, तिनका स्वरूप निश्चय करनें विपे उपयोग नाही लगाव है, ऐसा जानना।