________________
मोक्षशास्त्र
अब निर्ग्रथ साधुके भेद बतलाते हैं पुलाकवकुश कुशील निर्बंथस्नातकाः निर्ग्रथाः ॥ ४६ ॥
७४०
अर्थ - [ पुलाकबकुशकुशीलनिग्रंथ स्नातकाः ] पुलाक, वकुश, कुशील, निग्रंथ और स्नातक- ये पाँच प्रकारके [ निग्रंथाः ] निग्रंथ हैं । टीका
१ - सूत्र में आये हुये शब्दोंकी व्याख्या
(१) पुलाक- जो उत्तर गुणोंकी भावनासे रहित हो और किसी क्षेत्र तथा काल में किसी मूलगुरणमें भी अतीचार लगावे तथा जिसके अल्प विशुद्धता हो उसे पुलाक कहते हैं । विशेष कथन सूत्र ४७ प्रति सेवनाका अर्थ |
(२) बकुश - जो मूल गुणोंका निर्दोष पालन करता है किन्तु धर्मानुरागके कारण शरीर तथा उपकरणोंकी शोभा बढ़ानेके लिये कुछ इच्छा रखता है उसे बकुश कहते हैं ।
(३) कुशील - इसके दो भेद हैं १ - प्रतिसेवना कुशील और ( २ ) कषाय कुशील । जिसके शरीरादि तथा उपकरणादिसे पूर्ण विरक्तता न हो और मूलगुरण तथा उत्तर गुणोंकी परिपूर्णता हो परन्तु उत्तरगुणमें क्व'चित् कदाचित् विराधना होती हो उसे प्रतिसेवना कुशील कहते हैं । और जिसने संज्वलन के सिवाय अन्य कषायोंको जीत लिया हो उसे कषायकुशील कहते है ।
(४) निग्रंथ - जिनके मोहकर्म क्षीण होगया है तथा जिनके मोह कर्मके उदयका अभाव है ऐसे ग्यारहवें तथा बारहवे गुणस्थानवर्ती मुनिको निग्रंथ कहते हैं ।
(५) स्नातक - समस्त घातिया कर्मोके नाश करने वाले केवली भगवानको स्नातक कहते हैं । ( इसमें तेरहवाँ तथा चौदहवां दोनों गुरणस्थान समझना )