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अध्याय ६ सूत्र ४४-४५
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३- जो शुद्धात्माका अनुभव है सो यथार्थ मोक्षमार्ग । इसीलिये उसके निश्चय कहा है । व्रत, तपादि कोई सच्चे मोक्षमार्ग नही, किन्तु निमित्तादिककी अपेक्षासे उपचारसे उसे मोक्षमार्ग कहा है, इसीलिये इसे व्यवहार कहते हैं । इसप्रकार यह जानना कि भूतार्थ मोक्षमार्गके द्वारा निश्चयनय और अभूतार्थ मोक्षमार्गके द्वारा व्यवहारनय कहा है । किन्तु इन दोनोंको ही यथार्थं मोक्षमार्ग जानकर उसे उपादेय मानना सो तो मिथ्याबुद्धि ही है | ( देखो देहली० मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ३६७ ) ४ - किसी भी जीवके निश्चय व्यवहारका स्वरूप समझे विना धर्म या संवर - निर्जरा नही होती । शुद्ध ग्रात्माका यथार्थ स्वरूप समझे विना निश्चय व्यवहारका यथार्थ स्वरूप समझमे नही आता, इसलिये पहले आत्माका यथार्थं स्वरूप समझने की आवश्यकता है ।
अब पात्रकी अपेक्षासे निर्जरामें होनेवाली न्यूनाधिकता बतलाते हैं । सम्यग्दृष्टिश्रावक विरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीण मोहजिनाः क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जराः || ४५ ॥
अर्थ -- [ सम्यग्दृष्टि भावक विरतानंत वियोजक दर्शनमोहक्षपकोपशमकोशांतमोह क्षपक क्षीणमोह जिना: ] सम्यग्दृष्टि, पचमगुणस्थानवर्ती श्रावक, विरतमुनि, अनन्तानुबधीका विसंयोजन करनेवाला, दर्शनमोहका क्षय करनेवाला, उपशम श्रेणी मांडनेवाला, उपशांतमोह, क्षपक श्रेणी मांडनेवाला, क्षीणमोह और जिन इन सबके ( अंतर्मुहूर्त पर्यंत परिणामोकी विशुद्धताकी अधिकता से आयुकर्मको छोड़कर ) प्रति समय [क्रमशः असंख्येयगुण निर्जराः ] क्रमसे असख्यात गुणी निर्जरा होती है ।
टीका
(१) यहाँ पहले सम्यग्दृष्टिकी— चौथे गुणस्थान की दशा बतलाई
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