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मोक्षशास्त्र
पहला पृथक्त्व वितर्क शुक्लध्यान है और जो वीचार रहित तथा वितर्क सहित मणिके दीपककी तरह अचल है सो दूसरा एकत्ववितकं शुक्लव्यान है; इसमें अर्थ, वचन और योगका पलटना दूर हुआ होता है अर्थात् वह संक्रांति रहित है । वितर्ककी व्याख्या ४३ वें और वीचारकी व्याख्या ४४ वें सूत्रमे आवेगी ॥
२- जो ध्यान सूक्ष्म काययोगके अवलंबनसे होता है उसे सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाति ( तृतीय ) शुक्लध्यान कहते हैं; और जिसमे आत्मप्रदेशों में परिस्पंद और श्वासोच्छ्वासादि समस्त क्रियायें निवृत्त हो जाती हैं उसे व्युपरत क्रिया निर्वात ( चोथा ) शुक्लध्यान कहते हैं ।। ४१-४२ ॥ वितर्क का लक्षण वितर्कः श्रुतम् ॥ ४३ ॥
अर्थ – [ श्रुतम् ] श्रुतज्ञानको [ वितर्कः ] वितर्क कहते हैं ! नोट- 'श्रुतज्ञान' शब्द श्रवरणपूर्वक ज्ञानका ग्रहण बतलाता है | मतिज्ञानके भेदरूप चिताको भी तर्क कहते हैं वह यहाँ ग्रहण नहीं करना ॥ ४३ ॥
वीचार का लक्षण
वीचारो ऽर्थ व्यंजनयोगसंक्रान्तिः ॥ ४४ ॥
अर्थ - [ श्रर्थ व्यंजन योगसंक्रान्तिः ] अर्थ, व्यंजन और योगका बदलना सो [ वीचारः ] वीचार है ।
टीका
अर्थसंक्रान्ति —अर्थका तात्पर्य है ध्यान करने योग्य पदार्थ और संक्रान्तिका अर्थ बदलना है । ध्यान करने योग्य पदार्थ में द्रव्यको छोड़कर उसकी पर्यायका ध्यान करे अथवा पर्यायको छोड़कर द्रव्यका ध्यान करे सो अर्थ संक्रान्ति है |
व्यंजनसंक्रान्ति - व्यंजनका अर्थ वचन और संक्रांतिका अर्थ बदलना है ।