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________________ ७२६ मोक्षशास्त्र उत्तर-यह ठीक है कि छ8 गुणस्थानमें विकल्प होता है, परन्तु वहाँ उस विकल्पका स्वामित्व नहीं और सम्यग्दर्शनको दृढ़ता होकर अशुभ राग दूर होता जाता है, और तीन प्रकारके कषाय रहित वीतरागदशा है अतएव उतने दरजेमें वहाँ धर्मध्यान है और उससे संवर-निर्जरा होती है। चौथे और पांचवें गुणस्थानमें भी धर्मध्यान होता है और उससे उस गुणस्थानके योग्य संवर-निर्जरा होती है। जो शुभभाव होता है वह तो बंधका कारण होता है, वह यथार्थ धर्मध्यान नहीं। अतः किसीको शुभराग द्वारा धर्म हो ऐसा नहीं है। ४-धर्मध्यान-(धर्मका अर्थ है स्वभाव और ध्यानका अर्थ है एकाग्रता ) अपने शुद्धस्वभावमें जो एकाग्रता है सो निश्चय धर्मध्यान है; जिसमें क्रियाकाण्डके सर्व माडंबरोंका त्याग है, ऐसी अंतरंग क्रियाके आधाररूप जो आत्मा है उसे, मर्यादा रहित तीनों कालके कर्मोको उपाधि रहित निजस्वरूपसे जानता है, वह ज्ञानकी विशेष परिणति या जिसमें आत्मा स्वाश्रयमें स्थिर होता है सो निश्चय धर्मध्यान है और यहो सवर निर्जराका कारण है। जो व्यवहार धर्मध्यान है वह शुभभाव है; कर्मके चितवनमें मन लगा रहे, यह तो शुभपरिणामरूप धर्मध्यान है । जो केवल शुभपरिणामसे मोक्ष मानते है उन्हे समझाया है कि शुभपरिणामसे अर्थात् व्यवहार धर्मध्यानसे मोक्ष नहीं होता। [ देखो समयसार गाथा २६१ की टीका तथा भावार्थ ] आगम (-शास्त्र) की आज्ञा क्या है-जो यह ज्ञानस्वरूप प्रात्मा ध्रुव-अचल-ज्ञानस्वरूपसे परिणमित प्रतिभासते हैं, वही मोक्षका हेतु है कारण कि वह स्वयं भी मोक्षस्वरूप है; उसके अलावा जो कुछ है वह बन्धके हेतु है, कारण कि वह स्वयं भी बन्धस्वरूप है इसलिये ज्ञानस्वरूप होनेका अर्थात् अनुभूति करनेकी ही आगममें आज्ञा (-फरमान ) है। ( समयसार गाथा १५३ कलश १०५) ॥ ३६ ॥ अव शुक्लध्यानके स्वामी बताते हैं शुक्ले चाद्यपूर्वविदः ॥३७॥
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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