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मोक्षशास्त्र बन्धके कारण दूर ही नहीं होते-यह अबाधित सिद्धान्त है ।
१४. किस गुणस्थानमें क्या वन्ध होता है ? मिथ्यादृष्टि ( गुणस्थान १ ) के पाँचों बंध होते हैं, सासादन सम्यग्दृष्टि सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयत सम्यग्दृष्टि (गुणस्थान २-३-४ ) के मिथ्यात्वके सिवाय अविरति आदि चार बन्ध होते हैं, देश संयमी (गुणस्थान ५) के प्रांशिक अविरति तथा प्रमादादि तीनों बंध होते है, प्रमत्त संयमी (गुणस्थान ६ ) के मिथ्यात्व और अविरतिके अलावा प्रमादादि तीन बन्ध होते हैं। अप्रमत्तसंयमीके ( ७ से १० वें गुणस्थान तकके ) कषाय और योग ये दो ही बन्ध होते हैं । ११-१२ और १३ वें गुणस्थानमें सिर्फ एक योगका ही सद्भाव है और चौदहवें गुणस्थानमें किसी प्रकारका बन्ध नहीं है यह प्रबन्ध है और वहां सम्पूर्ण संवर है ।
१५. महापाप प्रश्न-जीवके सबसे बड़ा पाप कौन है ?
उत्तर-एक मिथ्यात्व ही है। जहाँ मिथ्यात्व है वहाँ अन्य सब पापोंका सद्भाव है । मिथ्यात्वके समान दूसरा कोई पाप नहीं ।
१६. इस सूत्रका सिद्धान्त आत्मस्वरूपकी पहिचानके द्वारा मिथ्यात्वके दूर होनेसे उसके साथ अनंतानुबंधी कषायका तथा ४१ प्रकृतियोंके बंधका प्रभाव होता है, तथा वाकीके कर्मोकी स्थिति अंतः कोडाकोड़ी सागरकी रह जाती है, और जीव थोड़े ही कालमें मोक्षपदको प्राप्त कर लेता है । संसारका मूल मिथ्यात्व है और मिथ्यात्वका अभाव किये बिना अन्य अनेक उपाय करनेपर भी मोक्ष या मोक्षमार्ग नही होता । इसलिये सबसे पहले यथार्थ उपायोंके द्वारा सर्व प्रकारसे उद्यम करके इस मिथ्यात्वका सनथा नाश करना योग्य है ॥१॥
बन्धका स्वरूप सकपायवाज्जीवः कर्मणो योग्यान्पुद्गलानादत्ते
स बंधः ॥२॥