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मोक्षशास्त्र
द्रव्यलिंगी मुनि हो निरतिचार महाव्रत पाले परन्तु अगृहीत मिथ्यात्व नहीं छोड़ा इसीलिये संसार बना रहा; श्रौर फिर गृहीत मिथ्यात्व स्वीकार किया । निग्रंथदशापूर्वक पंच महाव्रत तथा अट्ठाईस मूल गुणादिकका जो शुभविकल्प है सो द्रव्यलिंग है; गृहीत मिथ्यात्व छोड़े बिना जीव द्रव्यलिंगी नहीं हो सकता और द्रव्यलिंगके बिना निरतिचार महाव्रत नहीं हो सकते । वीतराग भगवानने द्रव्यलिंगी के निरतिचार महाव्रतको भी बालव्रत ओर असंयम कहा है क्योकि उसने श्रगृहीत मिथ्यात्व नही छोड़ा | ७ - गृहीतमिथ्यात्व के भेद
गृहीतमिथ्यात्वके पांच भेद है - ( १ ) एकान्तमिथ्यात्व, (२) संशय मिथ्यात्व, (३) विनयमिथ्यात्व, (४) अज्ञानमिथ्यात्व, प्रर ( ५ ) विपरीत मिथ्यात्व । इन प्रत्येककी व्याख्या निम्न प्रकार है:
(१) एकान्त मिध्यात्व — आत्मा परमाणु आदि सर्व पदार्थका स्वरूप अपने अपने अनेकान्तमय ( अनेक धर्मवाला ) होने पर भी उसे सर्वथा एक ही धर्मवाला मानना सो एकान्त मिथ्यात्व है । जैसे— जीवको सर्वथा क्षणिक अथवा नित्य ही मानना, गुण-गुणीको सर्वथा भेद या प्रभेद ही मानना सो एकान्त मिथ्यात्व है ।
(२) संशय मिथ्यात्व - 'धर्मका स्वरूप यों है या यों है' ऐसे परस्पर विरुद्ध दो रूपका श्रद्धान —— जैसे—– आत्मा अपने कार्यका कर्त्ता होता होगा या परवस्तुके कार्यका कर्त्ता होता होगा ? निमित्त और व्यवहारके श्रालम्बनसे धर्म होगा या अपना शुद्धात्माके आलम्बनसे धर्म होगा ? इत्यादिरूपसे संशय रहना सो संशय मिथ्यात्व है ।
(३) विपरीत मिथ्यात्व - आत्माके स्वरूपको अन्यथा माननेकी रुचिको विपरीत मिथ्यात्व कहते हैं; जैसे- सग्रन्थको निग्रंथ मानना, मिथ्यादृष्टि साधुको सच्चे गुरु मानना, केवलीके स्वरूपको विपरीतरूपसे मानना इत्यादि रूपसे जो विपरीत रुचि है सो विपरीत मिथ्यात्व है ।
(४) अज्ञान मिथ्यात्व - जहाँ हित-अहितका कुछ भी विवेक