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मोक्षशाखा का बंध नहीं होता; यह तो चौथे गुणस्थानमें सम्यग्दर्शनका फल है और ऊपरकी अवस्थामें जितने अंशमें चारित्रकी शुद्धता प्रगट होती है वह वीतराग चारित्रका फल है, परन्तु महाव्रत या देशवतका फल शुद्धता नहीं। महावत या देशवतका फल बन्धन है।
६-साधारण जीव लोकिकरूढ़दृष्टिसे यह तो मानते हैं कि अशुभभावमें धर्म नही है अर्थात् इस सम्बन्धी विशेष कहने की जरूरत नहीं। परंतु निजको धर्मी और समझदार माननेवाला जीव भी बड़े भागमें शुभभावको धर्म या धर्मका सहायक मानता है-यह मान्यता यथार्थ नहीं है। यह बात छ? और सातवें अध्यायमें की गई है कि शुभभाव धर्मका कारण नहीं किन्तु कर्मबन्धका कारण है । उसके कुछ नोट निम्नप्रकार हैं१-शुभभाव पुण्यका आस्रव है
अध्याय ६ सूत्र ३ २-सम्यक्त्व क्रिया, ईयापथ समिति
अध्याय ६ सूत्र ५ ३-जो मन्दकषाय है सो आस्रव है
अध्याय ६ सूत्र ६ ४-सर्वप्राणी और व्रतधारीके प्रति अनुकम्पा अध्याय ६ सूत्र १८ ५-मार्दव
अध्याय ६ सूत्र १५ ६-सरागसंयम, संयमासंयम
अध्याय ६ सूत्र २० ७-योगोकी सरलता
अध्याय ६ सूत्र २३ ८-तीर्थंकरनामकर्मबन्धके कारणरूप सोलह भावना अध्याय ६ सूत्र २४ ६-परप्रशंसा, आत्मनिंदा, नम्रवृत्ति, मदका अभाव, अध्याय ६ सूत्र २६ १०-महाव्रत, अणुव्रत
अध्याय ७ सूत्र १ से ८ तथा २१ ११-मैत्री आदि चार भावनायें
अध्याय ७ सूत्र ११ १२-जगत् और कायके स्वभावका विचार
अध्याय ७ सूत्र १२ १३-सल्लेखना
अध्याय ७ सूत्र २२ १४-दान
अध्याय ७ सूत्र ३८-३६ उपरोक्त सभी भावोंको आस्रवकी रीतिसे वर्णन किया है । इसतरह छ? और सातवें अध्यायमें आस्रवका वर्णन पूर्ण करके अब आठवें अध्यायमे बन्ध तत्त्वका वर्णन किया जायगा ।
७-हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रहका त्याग करना सो