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मोक्षशास्त्र
परिग्रहका स्वरूप मूर्छा परिग्रहः ॥ १७॥ अर्थ-[भूर्छा परिग्रहः ] जो मूर्छा है सो परिग्रह है।
टीका १-अंतरंगपरिग्रह चौदह प्रकारके हैं-एक मिथ्यात्व, चार कषाय और नी नोकषाय।
बाह्यपरिग्रह दस प्रकारके हैं-क्षेत्र, मकान, चांदी, सोना, धन, धान्य, दासी, दास, कपड़े और बर्तन ।
२-परद्रव्यमें ममत्वबुद्धिका नाम मूर्छा है। जो जीव बाह्य संयोग विद्यमान न होने पर भी ऐसा संकल्प करता है कि 'यह मेरा है' वह परिग्रह सहित है, बाह्य द्रव्य तो निमित्तमात्र है ।
३. प्रश्न-यदि तुम 'यह मेरा है' ऐसी बुद्धिको परिग्रह कहोगे तो सम्यग्ज्ञान आदि भी परिग्रह ठहरेंगे, क्योंकि ये मेरे हैं ऐसी बुद्धि ज्ञानी के भी होती है ?
उत्तर-परद्रव्यमें ममत्वबुद्धि परिग्रह है। स्व द्रव्यको अपना मानना सो परिग्रह नही है । सम्यग्ज्ञानादि तो आत्माका स्वभाव है अतः इसका त्याग नही हो सकता इसलिये उसे अपना मानना सो अपरिग्रहत्व है।
रागादिमे ऐसा संकल्प करना कि 'यह मेरा है' सो परिग्रह है, क्योंकि रागादिसे ही सर्व दोष उत्पन्न होते हैं ।
४-तेरहवे सूत्रके 'प्रमत्त योगात्' शब्दको अनुवृत्ति इस सूत्र में भी है, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रवान जीवके जितने अंशमे प्रमादभाव न हो उतने अंशमे अपरिग्रहीपन है ॥ १७ ॥
व्रती की विशेषता निःशल्यो व्रती ॥१८॥ मर्थ-[वती] व्रती जीव [निःशल्यः] शल्य रहित ही होता है।