SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 644
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्षशास्त्र टीका प्रश्न- परवस्तु आत्माको कुछ तथा आत्मासे परवस्तुका त्याग हो नही कथा सुनने आदिका त्याग क्यों कहा है ? ૧૬૪ लाभ - नुकसान नही करा सकती सकता तो फिर यहाँ स्त्रीरागकी उत्तर—श्रात्माने परवस्तुनोंको कभी ग्रहण नहीं किया और ग्रहण कर भी नही सकता इसीलिये इसका त्याग हो किस तरह बन सकता है ? इसलिये वास्तवमे परका त्याग ज्ञानियोंने कहा है ऐसा मान लेना योग्य नहीं है | ब्रह्मचर्यं पालन करनेवालोंको स्त्रियों और शरीरके प्रति राग दूर करना चाहिये अतः इस सूत्रमे उनके प्रति रागका त्याग करनेका कहा है । - व्यवहारके कथनोंको ही निश्चयके कथन की तरह नही मानना, परन्तु इस कथनका जो परमार्थरूप अर्थ हो वही समझना चाहिये । यदि जीवके स्त्री प्रादिके प्रति राग दूर होगया हो तो उस संबंधी रागवाली बात सुननेकी तरफ इसकी रुचिका झुकाव क्यों हो ? इस तरहकी रुचिका विकल्प इस ओरका राग बतलाता है इसलिये इस रागके त्याग करनेकी भावना इस सूत्र मे बतलाई है ॥ ६ ॥ परिग्रहत्यागत्रतको पाँच भावनायें मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेष वर्जनानि पंच ॥ ८ ॥ अर्थ - [ मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषय रागद्वेषवर्जनानि ] स्पर्शन आदि पाँचों इन्द्रियोके इष्ट अनिष्ट विषयोके प्रति रागद्वेषका त्याग करना [पंच ] सो पाँच परिग्रहत्यागवतकी भावनाये है । टीका इन्द्रियाँ दो प्रकारकी हैं- द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय; इसकी व्याख्या दूसरे अध्यायके १७-१८ सूत्रकी टीकामें दी है । भावेन्द्रिय यह ज्ञानका विकास है वह जिन पदार्थोको जानती है वे पदार्थ ज्ञानके विषय होनेसे ज्ञेय हैं, किन्तु यदि उनके प्रति राग द्वेष किया जावे तो उसे उपचारसे इंद्रि
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy