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मोक्षशास्त्र
टीका
प्रश्न- परवस्तु आत्माको कुछ तथा आत्मासे परवस्तुका त्याग हो नही कथा सुनने आदिका त्याग क्यों कहा है ?
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लाभ - नुकसान नही करा सकती सकता तो फिर यहाँ स्त्रीरागकी
उत्तर—श्रात्माने परवस्तुनोंको कभी ग्रहण नहीं किया और ग्रहण कर भी नही सकता इसीलिये इसका त्याग हो किस तरह बन सकता है ? इसलिये वास्तवमे परका त्याग ज्ञानियोंने कहा है ऐसा मान लेना योग्य नहीं है | ब्रह्मचर्यं पालन करनेवालोंको स्त्रियों और शरीरके प्रति राग दूर करना चाहिये अतः इस सूत्रमे उनके प्रति रागका त्याग करनेका कहा है । - व्यवहारके कथनोंको ही निश्चयके कथन की तरह नही मानना, परन्तु इस कथनका जो परमार्थरूप अर्थ हो वही समझना चाहिये ।
यदि जीवके स्त्री प्रादिके प्रति राग दूर होगया हो तो उस संबंधी रागवाली बात सुननेकी तरफ इसकी रुचिका झुकाव क्यों हो ? इस तरहकी रुचिका विकल्प इस ओरका राग बतलाता है इसलिये इस रागके त्याग करनेकी भावना इस सूत्र मे बतलाई है ॥ ६ ॥
परिग्रहत्यागत्रतको पाँच भावनायें मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेष वर्जनानि पंच ॥ ८ ॥
अर्थ - [ मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषय रागद्वेषवर्जनानि ] स्पर्शन आदि पाँचों इन्द्रियोके इष्ट अनिष्ट विषयोके प्रति रागद्वेषका त्याग करना [पंच ] सो पाँच परिग्रहत्यागवतकी भावनाये है ।
टीका
इन्द्रियाँ दो प्रकारकी हैं- द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय; इसकी व्याख्या दूसरे अध्यायके १७-१८ सूत्रकी टीकामें दी है । भावेन्द्रिय यह ज्ञानका विकास है वह जिन पदार्थोको जानती है वे पदार्थ ज्ञानके विषय होनेसे ज्ञेय हैं, किन्तु यदि उनके प्रति राग द्वेष किया जावे तो उसे उपचारसे इंद्रि