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मोक्षशास्त्र किसी वस्तुका बारबार विचार करना सो भावना है ॥ ३ ॥
अहिंसा व्रतकी पाँच भावनायें वाङमनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपान
भोजनानि पंच ॥४॥ अर्थ-[वाङ्मनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपानभोजनानि] वचनगुप्ति-वचनको रोकना, मनगुप्ति-मनकी प्रवृत्तिको रोकना, ईर्यासमिति चार हाथ जमीन देखकर चलना, प्रादाननिक्षेपणसमिति जीवरहित भूमि देखकर सावधानीसे किसी वस्तुको उठाना धरना और आलोकितपानभोजन-देखकर-शोधकर भोजन पानी ग्रहण करना [पंच ] ये पांच अहिंसा व्रतकी भावनायें हैं।
टीका १-जीव परद्रव्यका कुछ कर नहीं सकता, इसीलिये वचन, मन इत्यादिकी प्रवृत्तिको जीव रोक नहीं सकता किन्तु बोलनेके भावको तथा मनकी तरफ लक्ष करनेके भावको रोक सकता है, उसे वचनगुप्ति तथा मनगुप्ति कहते हैं । ईर्यासमिति आदिमें भी इसी प्रमाणसे अर्थ होता है। जीव शरीरको चला नहीं सकता किन्तु स्वयं एक क्षेत्रसे दूसरे क्षेत्र में जाने का भाव करता है और शरीर अपनी उस समयकी क्रियावती शक्तिको योग्यताके कारण चलने लायक हो तो स्वयं चलता है । जब जीव चलने का भाव करता है तब प्रायः शरीर उसकी अपनी योग्यतासे स्वयं चलता है-ऐसा निमित्तनैमित्तिकसम्बन्ध होता है इसीलिये व्यवहारनयकी अपेक्षासे 'वचनको रोकना, मनको रोकना, देखकर चलना, विचारकर बोलना' ऐसा कहा जाता है । इस कथनका यथार्थ अर्थ शब्दानुसार नहीं किन्तु भाव अनुसार होता है।
२. प्रश्न- यहाँ गुप्ति और समितिको पुण्यास्रवमें बताया और अध्याय ६ के सूत्र २ में उसे संवरके कारणमें बताया है-इसतरहसे तो कथनमे परस्पर विरोध होगा ?