________________
अध्याय -सूत्र २ देशवत होता है और छ? गुणस्थानमें महाव्रत होता है। 8 अध्यायके २० वें सूत्रमें कहा गया है कि यह व्यवहारक्त बास्रव है । निश्चयव्रतको अपेक्षा से ये दोनों प्रकारके व्रत एकदेश व्रत हैं ( देखो सूत्र १ की टीका, पैरा ५) सातवें गुणस्थानमें निर्विकल्प दशा होने पर यह व्यवहार महावत भी छूट जाता है और आगे की अवस्थामें निर्विकल्प दशा विशेष २ हड़ होती है इसीलिये वहाँ भी ये महाव्रत नहीं होते।
२-सम्यग्दृष्टि देशव्रती श्रावक होता है वह संकल्प पूर्वक प्रस जीव की हिंसा न करे, न करावे तथा यदि दूसरा कोई करे तो उसे भला नही समझता । उसके स्थावर जीवोंको हिंसाका त्याग नहीं तथापि बिना प्रयोजन स्थावर जीवोंकी विराधना नही करता और प्रयोजनवश पृथ्वी, जल इत्यादि जीवोंकी विराधना होती है, उसे भली-अच्छी नहीं जानता।
३. प्रश्न-इस शाखके अध्याय के सूत्र १८ में व्रतको संवर कहा है और अध्याय ९ के सूत्र २ में उसे संवरके कारणमें गभित किया है वहाँ दश प्रकारके धर्ममें अथवा संयममें उसका समावेश है अर्थात् उत्तम क्षमा, अहिंसा, उत्तम सत्यमें सत्य वचन, उत्तम शोचमें प्रचौर्य, उत्तम ब्रह्मचर्यमें ब्रह्मचर्य और उत्तम प्राचिन्यमे परिग्रह त्याग-इस तरह व्रतोंका समावेश उसमें हो जाता है, तथापि यहाँ व्रतको आसवका कारण क्यों कहा है ?
उचर-इसमें दोष नहीं; नवमां संवर अधिकार है वहां निवृत्ति स्वरूप वीतराग भावरूप.व्रतको संवर कहा है और यहां आस्रव अधिकार है इसमें प्रवृत्ति दिखाई जाती है। क्योंकि हिंसा, असत्य, चोरी इत्यादि छोड़ देने पर अहिंसा, सत्य, अचौर्य वस्तुका ग्रहण वगैरह क्रिया होती है इसीलिये ये व्रत शुभ कर्मोके प्रास्रवके कारण हैं । इन व्रतोंमे भी अव्रतों की तरह कर्मोंका प्रवाह होता है, इससे कर्मोंको निवृत्ति नहीं होती इसीलिये प्रास्रव अधिकारमे व्रतोका समावेश किया है ( देखो सर्वार्थसिद्धि अध्याय ७ सूत्र १ की टीका, पृष्ठ ५-६ )
४-मिथ्यात्व सदृश महापापको मुख्यरूपसे छुड़ाने की प्रवृत्ति न