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________________ अध्याय ७ सूत्र १ ५५३ है, उस ज्ञान द्वारा उस समय कर्मका क्षय होता है, उससे एक अंश मात्र भी बन्धन नहीं होता; ― ऐसा ही वस्तुका स्वरूप है; वह जैसा है वैसा कहते हैं ।" '( देखो, समयसार कलश टीका हिन्दी पुस्तक पृष्ठ ११२ सूरतसे प्रकाशित ) उपरोक्तानुसार स्पष्टीकरण करके फिर उस कलशका अर्थ विस्तार पूर्वक लिखा है; उसमें तत्संबंधी भी स्पष्टता है उसमें अन्तमें लिखते हैं कि"शुभक्रिया कदापि मोक्षका साधन नहीं हो सकती, वह मात्र बन्धन ही करनेवाली है ऐसी श्रद्धा करनेसे ही मिथ्या बुद्धिका नाश होकर सम्यग्ज्ञानका लाभ होगा। मोक्षका उपाय तो एकमात्र निश्चय रत्नत्रय - मय आत्माकी शुद्ध वीतराग परिणति है ।" ४- श्री राजमलजी कृत स० सार कलश टीका ( सूरतसे प्रकाशित ) पृ० ११४ ला० १७ से ऐसा लिखा है कि-"यहाँ पर इस बातको हृढ़ किया है कि कर्म निर्जराका साधन मात्र शुद्ध ज्ञानभाव है जितने अंश कालिमा है उतने अंश तो बन्ध ही है, शुभ क्रिया कभी भी मोक्षका साधन नही हो सकती । वह केवल बन्धको ही करनेवाली है, ऐसा श्रद्धान करनेसे ही मिथ्याबुद्धिका नाश होकर सम्यग्ज्ञानका लाभ होता है | मोक्षका उपाय तो एकमात्र निश्चय रत्नत्रयमयी आत्माकी शुद्ध - वीतराग परिणति है । जैसे पु० सिद्धि उपायमें कहा है “असमग्रं भावयतो गा० २११ ॥ ये नांशेन सुदृष्टि ॥ २१२ ॥ बाद भावार्थमे लिखा है कि- जहाँ शुद्ध भावकी पूर्णता नही हुई वहाँ भी रत्नत्रय है परन्तु जो जहाँ कर्मोंका बन्ध है सो रत्नत्रय से नही है, किन्तु अशुद्धतासे - रागभावसे है । क्योकि जितनी वहाँ अपूर्णता है या शुद्धता में कमी है वह मोक्षका उपाय नही है वह तो कर्म बन्ध ही करनेवाली है । जितने प्रशमे शुद्धदृष्टि है या सम्यग्दर्शन सहित शुद्ध भावकी परिणति है उतने अंश नवीन कर्म बन्घ नही करती किन्तु संवर निर्जरा करती है और उसी समय जितने अश रागभाव है उतने अंशसे कर्म बन्ध भी होता है । ७० ..
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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