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मोक्षशास्त्र सातावेदनीयके आस्रवके कारण भूतव्रत्यनुकम्पादानसरागसंयमादियोगः शान्तिः
शौचमिति सद्यस्य ॥ १२॥ अर्थ-[ भूतव्रत्यनुकंपा ] प्राणियोंके प्रति और व्रतधारियोंके प्रति अनुकंपा-दया दान सराग संयमादियोगः ] दान, सराग संयमादिके योग, [ क्षांतिः शौचमिति ] क्षमा और शौच, अहंतभक्ति इत्यादि [ सवेद्यस्य ] सातावेदनीय कर्मके आसूवके कारण हैं ।
टीका १. भूत-चारों गतियोंके प्राणी ।
व्रती%3D जिन्होंने सम्यग्दर्शन पूर्वक अणुव्रत या महाव्रत धारण किये हों ऐसा जीव;
इन दोनों पर अनुकम्पा-दया करना सो भूतव्रत्यनुकम्पा है।
प्रश्न-जब कि 'भूत' कहने पर उसमें समस्त जीव आगये तो फिर 'वती' बतलाने की क्या आवश्यक्ता है ?
उत्तर-सामान्य प्राणियोसे व्रती जीवोंके प्रति अनुकंपा की विशेषता बतलानेके लिये वह कहा गया है। व्रती जीवोंके प्रति भक्ति पूर्वक भाव होना चाहिये।
दान = दुखित, भूखे आदि जीवोके उपकारके लिये धन, औषधि, आहारादिक देना तथा व्रती सम्यग्दृष्टि सुपात्र जीवोको भक्ति पूर्वक दान देना सो दान है।
सरागसंयम - सम्यग्दर्शन पूर्वक चारित्रके धारक मुनिके जो महाव्रतरूप शुभभाव है संयमके साथ वह राग होनेसे सराग संयम कहा जाता है। राग कुछ संयम नही; जितना वीतरागभाव है वह संयम है।
२. प्रश्न-चारित्र दो तरहके बताये गए हैं (१) वीतराग