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मोक्षशास्त्र
अजीवाधिकरण आस्रव के भेद बतलाते हैं निर्वर्तनानिक्षेप संयोग निसर्गाः द्विचतुर्द्वित्रिभेदाः
परम् ॥ ६ ॥
अर्थ:- [ परम् ] दूसरा श्रजीवाधिकररण ग्रासूव [निर्वर्तना द्वि] दो प्रकारकी निर्वर्तना, [ निक्षेप चतुः ] चार प्रकारके निक्षेप [ संयोग द्वि ] दो प्रकारके संयोग और [ निसर्गाः त्रिभेदाः ] तीन प्रकारके निसर्ग ऐसे कुल ११ भेदरूप है ।
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टीका
निर्वर्तना
— रचना करना — निपजाना सो निर्वर्तना है, उसके दो भेद हैं: - १ - शरीरसे कुचेष्टा उत्पन्न करना सो देहदुः प्रयुक्त निर्वर्तना है और २ - शस्त्र इत्यादि हिंसा के उपकरणकी रचना करना सो उपकरण निर्वर्तना है । अथवा दूसरी तरहसे दो भेद इस तरह होते हैं: - १ -पाँच प्रकारके शरीर, मन, वचन, श्वासोछ्वासका उत्पन्न करना सो मूलगुण निर्वर्तना है और २ - काष्ट, मिट्टी, इत्यादिसे चित्र आदिको रचना करना सो उत्तरगुण निर्वर्तना है ।
निक्षेप - वस्तुको रखनेको (-धरनेको ) निक्षेप कहते हैं, उसके चार भेद हैं:—१-बिना देखे वस्तुका रखना सो श्रप्रत्यवेक्षित निक्षेपाधिकरण है; २-यत्नाचार रहित होकर वस्तुको रखना सो दुःप्रमृष्टनिक्षेपाधिकरण है, ३- भयादिकसे या अन्य कार्य करने की जल्दीमे पुस्तक, कमडलु, शरीर या शरीरादिकके मैलको रखना सो सहसा निक्षेपाधिकरण है और ४- जीव है या नही ऐसा बिना देखे और बिना विचार किए शीघ्रता से पुस्तक, कमडलु, शरीर या शरीरके मैलको रखना और जहाँ वस्तु रखनी चाहिये वहाँ न रखना सो अनाभोगनिक्षेपाधिकरण है ।
संयोग — मिलाप होना सो सयोग है; उसके दो भेद है, १ -भक्तपान संयोग और २ – उपकरण संयोग । एक आहार पानीको दूसरे श्राहारा पानी के साथ मिला देना सो भक्तपान संयोग है, और ठंडी पुस्तक, कमंडलु,