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मोक्षशास्त्र
अंतर्भाव किया है उसी तरहसे विशेष प्रभेदनयकी विवक्षा से आस्रवादि पदार्थोका भी जीव और अजोव इन दो ही पदार्थों में अंतर्भाव कर लेनेसे ये दो ही पदार्थ सिद्ध हो जायगे ।
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श्री गुरु इस प्रश्नका समाधान करते है कौन तत्त्व हेय है और कौन तत्त्व उपादेय हैं इसका परिज्ञान हो, इस प्रयोजनसे आस्रवादि तत्त्वों का निरूपण किया जाता है ।
अब यह कहते हैं कि हेय और उपादेय तत्त्व कौन हैं ? जो अक्षय अनंत सुख है वह उपादेय है; उसका कारण मोक्ष है; मोक्षका कारण संव और निर्जरा है; उसका कारण विशुद्ध ज्ञानदर्शन स्वभावसे निजआत्मतत्त्व स्वरूपके सम्यक् श्रद्धान-ज्ञान तथा आचरण लक्षण स्वरूप निश्चयरत्नत्रय है । उस निश्चय रत्नत्रयकी साधना चाहनेवाले जीवको व्यवहाररत्नत्रय क्या है यह समझकर, विपरीत श्रभिप्राय छोड़कर पर द्रव्य तथा राग परसे अपना लक्ष्य हटाकर निज आत्माके त्रैकालिक स्वरूपकी ओर अपना लक्ष्य ले जाना चाहिये अर्थात् स्वसंवेदन - स्वसन्मुख होकर स्वानुभूति प्रगट करना चाहिये | ऐसा करनेसे निश्चय सम्यग्दर्शन प्रगट होता है और उसके बलसे संवर, निर्जरा तथा मोक्ष प्रगट होता है; इसलिये ये तीन तत्त्व उपादेय हैं ।
अब यह बतलाते हैं कि हैय तत्त्व कौन है ? श्राकुलताको उत्पन्न करनेवाले ऐसे निगोद-नरकादि गतिके दुःख तथा इंद्रियों द्वारा उत्पन्न हुये जो कल्पित सुख हैं सो हेय ( छोड़ने योग्य ) हैं; उसका कारण स्वभावसे च्युतिरूप संसार है, संसारके कारण श्रास्रव तथा बंध ये दो तत्त्व हैं; पुण्य पाप दोनों बंध तत्त्व है; उस आस्रव तथा बंधके कारण, पहले कहे हुए निश्चय तथा व्यवहार रत्नत्रयसे विपरीत लक्षणके धारक ऐसे मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र ये तीन हैं । इसीलिये आस्रव और वंध तत्त्व हेय हैं ।
इस प्रकार हेय और उपादेय तत्त्वोंका ज्ञान होनेके लिये ज्ञानीजन सात तत्त्वोंका निरूपण करते हैं ।