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अध्याय ५ उपसंहार
४८३ उत्तर-नहीं, क्योंकि जगतमें पुद्गलका संग तो हमेशा रहता है, यदि उनकी जोरावरीसे जीवको रागादि विकार हो तो शुद्धभावरूप होनेका कभी अवसर नहीं आसकता, इसलिये ऐसा समझना चाहिये कि शुद्ध या अशुद्ध परिणमन करनेमें चेतन स्वयं समर्थ है।
(स० सार नाटक सर्वविशुद्धद्वार काव्य ६१ से ६६ )
[निमित्तके कही प्रेरक और उदासीन ऐसे दो भेद कहे हों तो वहाँ वे गमनक्रियावान् या इच्छाआदिवान् है या नही ऐसा समझानेके लिये है, परन्तु उपादानके लिये तो सर्व प्रकारके निमित्त धर्मास्तिकायवत् उदासीन ही कहे है। [देखो श्री पूज्यपादाचार्यकृत इष्टोपदेश गा० ३५. ]
प्रश्न-निमित्तनैमित्तिक संबंध किसे कहते है ?
उत्तर-उपादान स्वतः कार्यरूप परिणमता है उस समय, भावरूप था अभावरूप कौन उचित (-योग्य)निमित्त कारणका उसके साथ सम्वन्ध है, वह बतानेके लिये उस कार्यको नैमित्तिक कहते है। इस तरहसे भिन्न भिन्न पदार्थोके स्वतंत्र संबधको निमित्तनैमित्तिक संबंध कहते हैं।
(देखो प्रश्न 'निमित्त') - [निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध परतन्त्रताका सूचक नहीं है, किन्तु नैमित्तिकके साथमे कौन निमित्तरूप पदार्थ है उसका ज्ञान कराता है। जिस कार्यको नैमित्तिक कहा है उसीको उपादानकी अपेक्षा उपादेय भी कहते हैं। ]
निमिचनैमिचिक सम्बन्धके दृष्टांत:(१) केवलज्ञान नैमित्तिक है और लोकालोकरूप सव ज्ञेय निमित्त है, (प्रवचनसार गा० २६ की टीका )
(२) सम्यग्दर्शन नैमित्तिक है और सम्यग्ज्ञानीका उपदेशादि निमित्त है, ( आत्मानुशासन गा० १० की टोका )
(३) सिद्धदशा नैमित्तिक है और पुद्गलकर्मका अभाव निमित्त है, ( समयसार गा० ८३ की टोका)
(४) "जैसे अधःकर्मसे उत्पन्न और उद्देशसे उत्पन्न हुए निमित्तभूत