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मोक्षशास्त्र निश्चय होना चाहिये कि वह वस्तु है या नहीं। इसलिये जगत्में जो जो वस्तु हो वह सतरूपसे होनी हो चाहिये। जो वस्तु है उसीका विशेष विचार किया जाता है।
(२) इस सूत्रमें 'द्रव्य' शब्दका प्रयोग किया है, वह ऐसा भी बतलाता है कि उसमें द्रव्यत्व गुण है, 'कि जिस शक्तिके कारण द्रव्य सदा एक रूपसे न रहने पर उसकी अवस्था (-पर्याय ) हमेशा बदलती रहती है।'
(३) अब प्रश्न यह उठता है कि जब कि द्रव्य हमेशा अपनी पर्याय बदलता है तब क्या वह द्रव्य बदलकर दूसरे द्रव्यरूप हो जाता है ? इस प्रश्नका उत्तर इस सूत्रमें प्रयोग किया गया 'सत्' शब्द देता है 'सत्' शब्द बतलाता है कि द्रव्यमें अस्तित्व गुण है और इस शक्तिके कारण द्रव्यका कभी नाश नहीं होता।
(४) इससे यह सिद्ध हुआ कि द्रव्यकी पर्याय समय समय पर वदलती है तो भी द्रव्य त्रिकाल कायम ( मौजूद ) रहता है । यह सिद्धान्त सूत्र ३० और ३८ में दिया गया है।
(५) जिसके 'है' पन ( अस्तित्व ) हो वह द्रव्य है। इसतरह 'अस्तित्व' गुणके द्वारा द्रव्यकी रचना की जा सकती है । इसलिए इस सूत्रमें द्रव्यका लक्षण 'सत्' कहा है। यह सूत्र बतलाता है कि जिसका अस्तित्व हो वह द्रव्य है।
(६) अतः यह सिद्ध हुआ कि 'सत्' लक्षण द्वारा द्रव्य पहचाना जा सकता है। उपरोक्त कथनसे दो सिद्धांत निकले कि द्रव्यमें 'प्रमेयत्व' ( ज्ञानमे ज्ञात होने योग्य-Knowable ) गुण है और यह द्रव्य स्वयं स्व को जाननेवाला हो अथवा दूसरे द्रव्य उसे जाननेवाला हो । यदि ऐसा न हो तो निश्चित ही नही होता कि 'द्रव्य' है । इसलिये यह भी सिद्ध होता है कि द्रव्यमै 'प्रमेयत्व' गुण है और द्रव्य या तो जाननेवाला (चेतन) अथवा नही जाननेवाला (अचेतन) है। जाननेवाला द्रव्य 'जीव' है और नही जाननेवाला 'अजीव' है।
(७) प्रत्येक द्रव्य अपनी प्रयोजनभूत अर्थक्रिया (Functionality) करता ही है । यदि द्रव्य अर्थ क्रिया न करे तो वह कार्य रहित हो