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अध्याय ५ सूत्र २५-२६
४२३ अब पुद्गलके भेद बतलाते हैं
अगवः स्कन्धाश्च ॥ २५ ॥ अर्थ-पुदल द्रव्य [ प्रणवः स्कन्धाः च ] अणु और स्कंध के भेदसे दो प्रकारके है।
टीका (१) अणु-जिसका विभाग न हो सके ऐसे पुद्गलको अणु कहते है । पुद्गल मूल (Simple ) द्रव्य है।
स्कंध-दो तीन से लेकर संख्यात, असंख्यात और अनन्त पर. माणुओंके पिण्डको स्कंध कहते है।
(२) स्कंध पुद्गल द्रव्यकी विशेषता है । स्पर्श गुणके कारणसे वे स्कंधरूपसे परिणमते हैं। स्कंधरूप कब होता है यह इस अध्यायके २६, ३३, ३६ और ३७ वें सूत्रमे कहा है और वह कब स्कंधरूपमे नही होता यह सूत्र ३४ व ३५ मे बताया है।
(३) ऐसी विशेषता अन्य किसी द्रव्यमें नहीं है, क्योकि दूसरे द्रव्य अमूर्तिक हैं। यह सूत्र मिलापके संबंधमे द्रव्योंका अनेकान्तत्व बतलाता है।
(४) परमाणु स्वय ही मध्य और स्वयं ही अंत है, क्योकि वह एक प्रदेशी और अविभागी है ॥ २५ ॥
अब स्कंधोंकी उत्पचिका कारण बतलाते हैं
भेदसंघातेभ्यः उत्पद्यन्ते ॥ २६ ॥ अर्थ--परमाणुओके [ भेदसंघातेभ्यः ] भेद ( अलग होनेसे ) संघात ( मिलने से ) अथवा भेद संघात दोनो से [ उत्पद्यन्ते ] पुद्गल स्कंधोंकी उत्पत्ति होती है।
टीका (१) पिछले सूत्रोंमे (पूर्वोक्त सूत्रोमें ) पुद्गलद्रव्यकी विशिष्टता बत