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मोक्षशास्त्र
(१७) सर्वगत दो प्रकारसे है— क्षेत्र सर्वगत ( आकाश ) श्रीर भावसे सर्वगत (ज्ञांनशक्ति)
( १८ ) देशगत दो भेद रूप है- एक प्रदेशगत (परमाणु, काला तथा एक प्रदेश स्थित सूक्ष्म स्कंध ) और अनेक देशगत (धर्म, धर्म, जीव और पुद्गल स्कंध )
(१६) द्रव्योंमें अस्ति दो प्रकारसे हैं-अस्तिकाय (आकाश, धर्म, अधर्म, जीव तथा पुद्गल ) और काय रहित अस्ति (काला )
( २० ) अस्तिकाय दो तरहसे हैं - अखण्ड अस्तिकाय (आकाश, धर्म, अधर्म तथा जीव) और उपचरित अस्तिकाय ( संयोगी पुद्गल स्कंध, पुद्गलमें ही समूहरूप - स्कन्धरूप होने की शक्ति है )
(२१) प्रत्येक द्रव्यके गुरणं तथा पर्याय में अस्तित्व दो तरह से हैस्वसे अस्तित्व और परकी अपेक्षासे नास्तिरूपका अस्तित्व ।
(२२) प्रत्येक द्रव्यमें अस्तित्व दो तरहसे है- ध्रुव और उत्पाद
व्यय ।
(२३) द्रव्यों में दो तरहकी शक्ति है एक भावंत्रती दूसरी क्रियावती । (२४) द्रव्यों में सम्बन्ध दो तरहका है -विभाव सहित ( जीव और पुद्गलके अशुद्ध दशा में विभाव होता है ) और विभाव रहित (दूसरे द्रव्यं त्रिकाल विभाव रहित हैं )
(२५) द्रव्योंमें विभाव दो तरहसे है -- १ - जीवके विजातीय द्गलके साथ, २- पुंगलके सजातीय एक दूसरेके साथ तथा सजातीय दंगल और विजातीय जीव इन दोनोंके साथ |
नोट- स्याद्वाद समस्त वस्तुओंके स्वरूपका सांघनेवाला, अहंत सर्वेश का एक अस्खलित शासन है । वह यह बतलाना है कि 'संभो 'अनेकान्तात्मक है' । स्याद्वाद वस्तुके यथार्थ स्वरूपका निर्णय कराता है । यह संशयवाद नही है । कितने ही लोग कहते है कि स्याद्वाद प्रत्येक वस्तुको नित्य और अनित्य आदि दो तरह से बतलाता है, इसलिए संशयका कारण है,