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अध्याय ५ सूत्र १-२.३
३६१ (५)प्रश्न-पुद्गल द्रव्य तो एक प्रदेशी हैं, उसे काय शब्द कैसे लागू होगा ?
उत्तर-उसमें दूसरे पुद्गलोंके साथ मिलने को और इसलिए बहुप्रदेशी होने की शक्ति है, इसी अपेक्षासे उसे काय कहा जाता है।
(६) धर्म और अधर्म ये दो द्रव्य सर्वज्ञ प्रणीत शाखोमें हैं । ये नाम शास्त्र रूढ़िसे दिए गए हैं ॥ १ ॥
ये अजीवकाय क्या हैं ?
द्रव्याणि ॥२॥ अर्थ-ये चार पदार्थ [ द्रव्याणि ] द्रव्य हैं, ( द्रव्यका लक्षण २९, ३०, ३८, वे सूत्रोंमें पायगा )।
टीका (१) जो त्रिकाल अपने गुण पर्यायको प्राप्त होता है उसे द्रव्य कहते हैं।
(२) द्रव्य अपने गुण पर्यायको प्राप्त होता है, अर्थात् परके गुण पर्यायको कोई प्राप्त नहीं होता, ऐसा (अस्ति-नास्तिरूप ) अनेकात दृष्टिसे अर्थ होता है। पुद्गल अपने पर्यायरूप शरीरको प्राप्त होता है, किन्तु जीव या दूसरा कोई द्रव्य शरीरको प्राप्त नहीं होता । यदि जीव शरीरको प्राप्त हो तो शरीर जीव की पर्याय हो जाय; इससे यह सिद्ध हुआ कि जीव और शरीर अत्यन्त भिन्न पदार्थ हैं और इसीलिए जीव शरीरको प्राप्त न होनेसे त्रिकालमें भी शरीरका कुछ कर नही सकता ॥२॥
द्रव्यमें जीव की गिनती
जीवाश्च ॥३॥ अर्थ-[ जीवाः ] जीव [च ] भी द्रव्य है ।