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मोक्षशास्त्र
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से, अनेक धर्मरूप कथंचित् वस्तुपना संभवित है; उसे सप्त भंगसे सिद्ध करना चाहिये ।
(४) यह नियमपूर्वक जानना चाहिये कि प्रत्येक वस्तु अनेक धर्म स्वरूप है उन सबको अनेकान्त स्वरूप जानकर जो श्रद्धा करता है और उसी प्रमाणसे ही संसारमें व्यवहारकी प्रवृत्ति करता है सो सम्यग्दृष्टि है | जीव, अजीव, प्राश्रव, बंध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये नव पदार्थ हैं उनकी भी उसी प्रकारसे सप्त भंगसे सिद्धि करना चाहिये । उसका साधन श्रुतज्ञान प्रमाण है ।
नय
(१) श्रुतज्ञान प्रमाण है । र श्रुतज्ञान प्रमाणके अंशको नय कहते है । नय के दो भेद है -द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक । और उनके (द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक के) नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़, और एवंभूतनय, ये सात भेद हैं, उनमेंसे पहिलेके तीन भेद द्रव्यार्थिकके हैं और बाकीके चार भेद पर्यायार्थिकके हैं । और उनके भी उत्तरोत्तर भेद, जितने वचनके भेद हैं उतने हैं । उन्हे प्रमारण सप्तभंगी और नय सप्तभंगीके विधानसे सिद्ध किया जाता है । इसप्रकार प्रमाण और नय के द्वारा जीवादि पदार्थोंको जानकर श्रद्धान करे तो शुद्ध सम्यदृष्टि होता है ।
(२) और यहाँ इतना विशेष जानना चाहिये कि नय वस्तुके एक एक धर्मका ग्राहक है । वह प्रत्येक नय अपने अपने विषयरूप धर्मके ग्रहण करने में समान है । तथापि वक्ता अपने प्रयोजनवश उन्हें - मुख्य-गौण करके कहता है ।
जैसे जीव नामक वस्तु है, उसमें अनेक धर्म हैं तथापि चेतनत्व, प्राणधारणत्व इत्यादि धर्मोको अजीवसे असाधारण देखकर जीवको अजीव से भिन्न दर्शानेके लिये उन धर्मोको मुख्य करके वस्तुका नाम जीव रखा है; इसी प्रकार वस्तुके सर्व धर्मोमें प्रयोजनवश मुख्य गौण समझना चाहिये । अध्यात्मके नय
(१) इसी श्राशयसे अध्यात्मकथनी में मुख्यको निश्चय और गौण