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मोक्षशास्त्र अर्थ–सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्गके देवोंकी आयु सात सागरसे कुछ अधिक है।
नोट:-इस सूत्रमें 'अधिक' शब्द की अनुवृत्ति पूर्व सूत्रसे आयी है ॥ ३० ॥ त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपंचदशभिरधिकानितु ॥ ३१ ॥
अर्थ:-पूर्व सूत्रमें कहे हुए युगलोंकी आयु ( सात सागर ) से क्रमपूर्वक, तीन, सात, नव, ग्यारह, तेरह और पन्द्रह सागर अधिक आयु ( उसके बादके स्वर्गोमें ) है।।
१. ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर स्वर्गमें दश सागरसे कुछ अधिक, लांतव और कापिष्ट स्वर्ग में चौदह सागरसे कुछ अधिक, शुक्र और महाशुक स्वर्गमें सोलह सागरसे कुछ अधिक, सतार और सहस्रार स्वर्ग में अठारह सागरसे कुछ अधिक, आनत और प्राणत स्वर्ग में बीस सागर तथा आरण और अच्युत स्वर्गमें बावीस सागर उत्कृष्ट आयु है।
२. 'तु' शब्द होनेके कारण 'अधिक' शब्दका सम्बन्ध बारहवें स्वर्ग तक ही होता है क्योंकि घातायुष्क जीवोंकी उत्पत्ति वहाँ तक ही होती है ॥ ३१ ॥
____ कल्पोपपन्न देवोंकी आयु कह करके अब कल्पातीत देवोंकी आयु कहते है।
__कल्पातीत देवोंकी आयु श्रारणाच्युतादूर्ध्वमेकैकेन नवसु चेयकेषु विजया
दिषु सर्वार्थसिद्धौ च ॥३२॥ अर्थ-आरण और अच्युत स्वर्गसे ऊपरके नव वेयकोंमें, नव अनुदिशोमें, विजय इत्यादि विमानोमें और सर्वार्थ सिद्धि विमानमे देवोंकी आयु-एक एक सागर अधिक है।