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मोक्षशास्त्र कितनी है यह बतावेंगे तथा नारकियोंकी जघन्य आयु कितनी है यह बतावेगे। मनुष्य तथा तिर्यंचोंकी आयुकी स्थितिका वर्णन तीसरे अध्यायके सूत्र ३८-३६ में कहा गया है।
___ इसप्रकार, दूसरे अध्यायके दशवें सूत्रमें जीवोंके संसारी और मुक्त ऐसे जो दो भेद कहे थे उनमेंसे संसारी जीवोंका वर्णन चौथे अध्याय तक पूरा हुआ। तत्पश्चात् पांचवें अध्यायमें अजीव तत्त्वका वर्णन करेगे। छठवें तथा सातवें अध्यायमें पाश्रव तथा पाठवें अध्यायमें बन्ध तत्त्वका वर्णन करेगे तथा नवमें अध्यायमें संवर और निर्जरा तत्त्वका वर्णन करेगे और मुक्त जीवों का ( मोक्ष तत्त्वका ) वर्णन दशवें अध्यायमें करके ग्रंथ पूर्ण करेगे।]
तिर्यंच कौन हैं ? औपपादिकमनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः ॥२७॥
अर्थ-उपपाद जन्मवाले ( देव तथा नारकी ) और मनुष्योंके अतिरिक्त बाकी बचे हुए तियंच योनिवाले ही हैं।
टीका देव नारकी और मनुष्योंके अतिरिक्त सभी जीव तिर्यंच हैं उनमेसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव तो समस्त लोकमे व्याप्त है । लोकका एक भी प्रदेश सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोसे रहित नही है। बादर एकेन्द्रिय जीवोंको पृथ्वी इत्यादिका आधार होता है।
विकलत्रय (दो तीन और चार इन्द्रिय) और संज्ञी-असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव त्रसनालीमें कही कही होते हैं त्रसनालीके बाहर त्रसजीव नही होते। तिथंच जीव समस्त लोकमें होनेसे उनका क्षेत्र विभाग नही है ॥ २७ ॥
भवनवासी देवोंकी उत्कृष्ट आयुका वर्णन स्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणां सागरोपमत्रिपल्यो
पमा हीनमिताः॥२८॥