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( १३ ) भावलिंगी निर्ग्रन्थ साधु
( १४ ) अढ़ाईद्वीपके अणुव्रतधारी तिर्यन्च
मोक्षशास्त्र
( १५ ) पॉच मेरु संबंधी तीस भोगभूमिके मनुष्य-तियंन्च मिथ्यादृष्टि
( १६ )
सम्यग्दृष्टि
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( १७ ) छ्यानवें अंतद्वीप कुभोगभूमिके
म्लेच्छ मनुष्य; मानुषोत्तर और स्वयंप्रभाचल पर्वतके बीचके
श्रसंख्यात द्वीपोंमे उत्पन्न हुए तिर्यन्च
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कहाँ से आता है ?
( १ ) भवनत्रिक देव और सौधर्म-ऐशान से
नोट - एकेन्द्रिय, विकलत्रय, देव तथा नारकी ये देवों में उत्पन्न नही होते क्योंकि उनके देवोंमें उत्पन्न होनेके योग्य शुभभाव होते ही नहीं । ६. देव पर्यायसे च्युत होकर कौनसी पर्याय धारण करता है उसकी विगत
( २ ) सनत्कुमारादिकसे ( ३ ) बारहवें स्वर्ग पर्यन्तसे
( ४ ) आनत - प्राणतादिक से
सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त सौधर्म में लेकर बारहवें स्वर्ग पर्यन्त । भवनत्रिक में
(वारहवें स्वर्गके ऊपरसे )
सौधर्म ऐशान में भवन त्रिकमें
कौनसी पर्याय धारण करे ? एकेन्द्रिय बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय, अपकाय, प्रत्येक वनस्पति, मनुष्य
तथा पंचेन्द्रिय तिर्यन्च में उपजे ( विकलत्रयमे नही जाता ) स्थावर नही होता । पंचेन्द्रिय तिर्यन्च तथा मनुष्य होता है ।
नियमसे मनुष्यमें ही उत्पन्न होता है तिर्यन्चोमे नही होता ।