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________________ ३५८ ( १३ ) भावलिंगी निर्ग्रन्थ साधु ( १४ ) अढ़ाईद्वीपके अणुव्रतधारी तिर्यन्च मोक्षशास्त्र ( १५ ) पॉच मेरु संबंधी तीस भोगभूमिके मनुष्य-तियंन्च मिथ्यादृष्टि ( १६ ) सम्यग्दृष्टि 13 ( १७ ) छ्यानवें अंतद्वीप कुभोगभूमिके म्लेच्छ मनुष्य; मानुषोत्तर और स्वयंप्रभाचल पर्वतके बीचके श्रसंख्यात द्वीपोंमे उत्पन्न हुए तिर्यन्च 23 कहाँ से आता है ? ( १ ) भवनत्रिक देव और सौधर्म-ऐशान से नोट - एकेन्द्रिय, विकलत्रय, देव तथा नारकी ये देवों में उत्पन्न नही होते क्योंकि उनके देवोंमें उत्पन्न होनेके योग्य शुभभाव होते ही नहीं । ६. देव पर्यायसे च्युत होकर कौनसी पर्याय धारण करता है उसकी विगत ( २ ) सनत्कुमारादिकसे ( ३ ) बारहवें स्वर्ग पर्यन्तसे ( ४ ) आनत - प्राणतादिक से सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त सौधर्म में लेकर बारहवें स्वर्ग पर्यन्त । भवनत्रिक में (वारहवें स्वर्गके ऊपरसे ) सौधर्म ऐशान में भवन त्रिकमें कौनसी पर्याय धारण करे ? एकेन्द्रिय बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय, अपकाय, प्रत्येक वनस्पति, मनुष्य तथा पंचेन्द्रिय तिर्यन्च में उपजे ( विकलत्रयमे नही जाता ) स्थावर नही होता । पंचेन्द्रिय तिर्यन्च तथा मनुष्य होता है । नियमसे मनुष्यमें ही उत्पन्न होता है तिर्यन्चोमे नही होता ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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