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मोक्षशास्त्र शरीर-शरीरका विस्तार सो शरीर है । परिग्रह-लोभ कषायके कारण ममतापरिणाम सो परिग्रह है। अभिमान-मानकषायके कारण अहंकार सो अभिमान है।
२. प्रश्न-ऊपर ऊपरके देवोंके विक्रिया आदि की अधिकताके कारण गमन इत्यादि विशेष रूपसे होना चाहिये फिर भी उसकी हीनता कैसे कही?
उचर-गमनकी शक्ति तो ऊपर ऊपरके देवोंमें अधिक है किन्तु अन्य क्षेत्रमें गमन करनेके परिणाम अधिक नहीं हैं इसलिये गमनहीन हैं ऐसा कहा है । सौधर्म-ऐशानके देव क्रीड़ादिकके निमित्तसे महान् विषयानुरागसे बारम्बार अनेक क्षेत्रोंमें गमन करते है। ऊपरके देवोंके विषयकी उत्कट ( तीव्र ) वांच्छाका अभाव है इसलिये उनकी गति हीन है।
३. शरीरका प्रमाण चालू अध्यायके अन्तिम कोष्टकमें बताया है वहाँ से जानना चाहिये ।
४. विमान-परिवारादिकरूप परिग्रह ऊपर ऊपरके देवोंमें थोड़ा २ होता है। कषायकी मंदतासे अवधिज्ञानादिमें विशुद्धता बढ़ती है और अभिमान कमती होता है। जिनके मंद कषाय होती है वे ऊपर ऊपर उत्पन्न होते है। ५. शुभ परिणामके कारण कौन जीव किस स्वर्गमें उत्पन्न होता है
उसका स्पष्टीकरण वौन उपजे ?
कहाँ उपजे? (१) असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त
भवनवासी तथा तियंच
व्यन्तर...... .... (२) कर्मभूमिके संज्ञी पर्याप्त
बारहवें स्वर्ग पर्यंत तिर्यचमिथ्याइष्टि या सासादन गुणस्थानवाले,