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मोक्षशास्त्र
इसप्रकार भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी इन तीन प्रकारेके देवों का वर्णन पूरा हुआ, अब चौथे प्रकारके-वैमानिक देवोंका स्वरूप कहते हैं।
वैमानिक देवोंका वर्णन
वैमानिकाः ॥ १६ ॥ अर्थ-अब वैमानिक देवोंका वर्णन शुरू करते हैं।
टीका
विमान-जिन स्थानोंमें रहनेवाले देव अपनेको विशेष पुण्यात्मा समझे उन स्थानोंको विमान कहते है।
वैमानिक-उन विमानोंमें पैदा होनेवाले देव वैमानिक कहे जाते हैं।
वहाँ सब चौरासी लाख सतानवे हजार तेवीस विमान हैं। उनमें उत्तम मंदिर, कल्पवृक्ष, वन-बाग बावड़ी, नगर इत्यादि अनेक प्रकारकी रचना होती है। उनके मध्यमें जो विमान है वे इंद्रक विमान कहे जाते हैं उन की पूर्वादि चारों दिशाओंमें पंक्तिरूप (सीधी लाइनमें) जो विमान हैं उन्हें श्रेणिबद्ध विमान कहते हैं। चारों दिशाओंके बीच अंतरालमे-विदिशाओंमें जहाँ तहाँ बिखरे हुए फूलोंकी तरह जो विमान हैं उन्हे प्रकीर्णक विमान कहते हैं । इसप्रकार इन्द्रक, श्रेरिणबद्ध और प्रकीर्णक ये तीनप्रकारके विमान हैं ॥ १६ ॥
वैमानिक देवोंके भेदकल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च ।। १७॥ अर्थ-वैमानिक देवोके दो भेद हैं-१. कल्पोपपन्न और २. कल्पातीत ।
टीका जिनमे इंद्रादि दशप्रकारके भेदोंकी कल्पना होती है ऐसे सोलह स्वर्गोंको कल्प कहते हैं, और उन कल्पोंमें जो देव पैदा होते हैं उन्हें कल्लो