________________
अध्याय ४ सूत्र १०-११
३४६ ५. भवनवासी देवोंका आहार और श्वासका काल
१-असुरकुमार देवोंके एक हजार वर्ष बाद प्राहारकी इच्छा उत्पन्न होती है और मनमें उसका विचार आते ही कंठसे अमृत झरता है, वेदना व्याप्त नही होती, पन्द्रह दिन बीत जाने पर श्वास लेते है ।
२-४ नागकुमार, सुपर्णकुमार और द्वीपकुमार ये तीनप्रकारके देवों के साडे बारह दिन बाद माहारकी इच्छा होती है और साढ़े बारह मुहूर्त बीत जाने पर श्वास लेते हैं ।
५-७ उदधिकुमार, विद्युतकुमार और स्तनितकुमार इन तीन प्रकारके देवोंके बारह दिन बाद आहारकी इच्छा होती है और बारह मुहूर्त बाद श्वास लेते है।
८-१० दिक्कुमार, अग्निकुमार और वातकुमार इन तीनप्रकारके देवोंके साढे सात दिन बाद आहारकी इच्छा होती है और साढ़े सात मुहूर्त बाद श्वास लेते हैं।
देवोंके कवलाहार नही होता उनके कंठमेसे अमृत झरता है, और उनके वेदना व्यापती नहीं है।
इस अध्यायके अंतमें देवोंको व्यवस्था बतानेवाला कोष्टक है उससे दूसरी बातें जान लेना चाहिये ॥१०॥
व्यन्तर देवोंके आठ भेद व्यन्तराः किन्नरकिंपुरुषमहोरगगन्धर्वयक्षराक्षस
भूतपिशाचाः ॥ ११ ॥ अर्थ-व्यन्तर देवोके आठ भेद हैं-१-किन्नर, २-किंपुरुष, ३महोरग, ४-गन्धर्व, ५-यक्ष, ६-राक्षस, ७-भूत और ८-पिशाच ।
टीका
१. कुछ व्यन्तरदेव जम्बूद्वीप तथा दूसरे असंख्यात द्वीप समुद्रोंमे रहते हैं । राक्षस रत्नप्रभा पृथ्वीके 'पंकभागमे' रहते हैं और राक्षसोंको