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________________ ३४८ मोक्षशास्त्र दधिद्वपदिक्कुमाराः ॥ १० ॥ अर्थ — भवनवासी देवोंके दश भेद हैं—१—असुरकुमार, २नागकुमार, ३ - विद्युत्कुमार, ४- — सुपर्णकुमार, ५ —अग्निकुमार, ६– वातकुमार, ७ —– स्तनितकुमार, FI - उदधिकुमार, 8 —— द्वीपकुमार और • - १० दिक्कुमार । टीका १. २० वर्षके नीचेके युवकके जैसा जीवन और आदत होती है वैसा ही जीवन और श्रादत इन देवोंके भी होती है इसलिये उन्हें कुमार कहते हैं । २. उनके रहनेका स्थान निम्नप्रकार है प्रथम पृथ्वी- रत्नप्रभामें तीन भूमियाँ ( Stages) हैं उसमें पहिली भूमिको 'खरभाग' कहते हैं उसमें असुरकुमारको छोड़कर नवप्रकारके भवनवासी देव रहते हैं । जिस भूमिमें असुरकुमार रहते हैं उस भागको 'पंकभाग' कहते हैं, उसमें राक्षस भी रहते हैं । 'पंकभाग' रत्नप्रभा पृथ्वीका दूसरा भाग है । रत्नप्रभाका तीसरा ( सबसे नीचा ) भाग 'अब्बहुल' कहलाता है वह पहिला नरक है । ३. भवनवासी देवोंकी यह असुरकुमारादि दश प्रकारकी संज्ञा उन उन प्रकारके नामकर्मके उदयसे होती है ऐसा जानना चाहिये । 'जो देव युद्ध करें, प्रहार करें वे असुर हैं, ऐसा कहना ठीक नही है अर्थात् वह देवोंका प्रवर्णवाद है और उससे मिथ्यात्वका बन्ध होता है । ४. दश जातिके भवनवासी देवोंके सात करोड़ बहत्तर लाख भवन हैं; ये भवन महासुगन्धित, अत्यंत रमणीक, श्रौर अत्यंत उद्योतरूप हैं; और उतनी ही संख्या ( ७,७२,००,००० ) जिन चंत्यालयोंकी है । दशप्रकारके चैत्यवृक्ष जिनप्रतिमासे विराजित होते हैं ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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