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मोक्षशास्त्र अब म्लेच्छ मनुष्योंका वर्णन करते हैं ।
१२. म्लेच्छ म्लेच्छ मनुष्य दो प्रकारके हैं-कर्मभूमिज और अन्तर्वीपज, (१) पाँच भरतके पाँच खंड, पाँच ऐरावतके पाँच खंड और विदेहके आठसौ खंड, इसप्रकार ( २५+२५+८०० ) आठसौ पचास म्लेच्छ क्षेत्र हैं, उनमें उत्पन्न हुए मनुष्य कर्मभूमिज हैं; (२) लवणसमुद्रमें अड़तालीस द्वीप तथा कालोदधि समुद्र में अड़तालीस द्वीप, दोनों मिलकर छियानवे द्वीपोंमें कुभोगभूमियाँ मनुष्य हैं उन्हें प्रतीपज म्लेच्छ कहते हैं। उन अंत:पज म्लेच्छ मनुष्योंके चेहरे विचित्र प्रकारके होते हैं। उनके मनुष्योके शरीर (धड़ ) और उनके ऊपर हाथी, रीछ, मछली इत्यादिकोंका सिर, बहुत लम्बे कान, एक पग, पूछ इत्यादि होती है। उनकी आयु एक पल्यकी होती है और वृक्षोंके फल मिट्टी इत्यादि उनका भोजन है ॥ ३६॥
कर्मभूमिका वर्णन भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र
देवकुरूत्तरकुरुभ्यः ॥ ३७॥ अर्थ-पांच मेरु संबंधी पांच भरत, पांच ऐरावत, देवकुरु तथा उत्तरकुरु ये दोनों छोड़कर पांच विदेह, इसप्रकार अढ़ाईद्वीपमें कुल पन्द्रह कर्मभूमियां हैं।
टीका १. जहाँ असि, मसि, कृषि, वाणिज्य विद्या और शिल्प इन छह कर्मकी प्रवृत्ति हो उसे कर्मभूमि कहते हैं। विदेहके एक मेरु संबंधी बत्तीस भेद हैं; और पांच विदेह हैं उनके ३२४५=१६० क्षेत्र पांच विदेहके हुए, और पाँच भरत तथा पाँच ऐरावत ये दश मिलकर कुल पन्द्रह कर्मभूमियोंके १७० क्षेत्र हैं । ये पवित्रताके धर्मके क्षेत्र हैं और मुक्ति प्राप्त करनेवाले मनुष्य वहाँ ही जन्म लेते हैं।