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मोक्षशास्त्र
अक्षीरगमहालय | उनका स्वरूप निम्नप्रकार है ।
लार्भात रायके उत्कृष्ट क्षयोपशम से अति संयमवान मुनिको जिस भाजन में से जो भोजन दे उस भाजन मेंसे चक्रवर्ती की समस्त सैन्य भोजन करले तो भी उस दिन भोजन सामग्री न घटे सो अक्षीरणमहानक्षेत्रऋद्धि है ॥ १ ॥ ऋद्धिसहितमुनि जिस स्थानमें बैठे वहाँ देव, राजा, मनुष्यादिक बहुतसे आकर बैठें तो भी क्षेत्रमें कमी न पड़े, आपस में बाधा न होय सो अक्षीणमहालयक्षेत्रऋद्धि है ||२|| इसप्रकार दो प्रकारकी क्षेत्रऋद्धि है ।
इस प्रकार, पहिले आर्य और म्लेच्छ ऐसे मनुष्योके दो भेद किये थे उनमें से आर्यके ऋद्धिप्राप्त और अनऋद्धिप्राप्त ऐसे दो भेद किये । उनमें से ऋद्धिप्राप्त आर्योंके ऋद्धिके भेदोंका स्वरूप वर्णन किया; अब अनऋद्धिप्राप्त आर्योका भेद वर्णन करते हैं ।
११. अनऋद्धिप्राप्त आर्य
अनऋद्धिप्राप्त आर्योके पांच भेद हैं- ( १ ) क्षेत्रआर्य, ( २ ). जातिश्रार्य, ( ३ ) कर्मचार्य, (४) चारित्रआर्य और ( ५ ) दर्शनआर्य, उनका स्वरूप निम्नप्रकार है ।
(१) क्षेत्रआर्य - जो मनुष्य आर्य देशमें उत्पन्न हों उन्हें क्षेत्रश्रार्य कहते हैं ।
(२) जाति आर्य - जो मनुष्य ईक्ष्वाकुवंश, भोजवंशादिकमें उत्पन्न हों उन्हें जातिआर्य कहते है ।
( ३ ) कर्म आर्य – उनके तीन भेद होते हैं- सावद्यकर्म आर्य, अल्पसावद्यकर्म आर्य और असावद्यकर्म आर्य । उनमेंसे सावद्यकर्ममार्यो ६ भेद हैं-असि, मसि, कृषि, विद्या, शिल्प और वाणिज्य |
जो तलवार इत्यादि आयुध धारण करके आजीविका करते हैं उन्हें असि कर्मचार्य कहते हैं । जो द्रव्य की आय तथा खर्च लिखने में निपुण हों उन्हें मसिकर्मप्रार्य कहते है । जो हल वखर इत्यादि खेती के साधनोसे खूब खेती करके आजीविकामे प्रवीण हों उन्हें कृषिकमंआर्य कहते हैं । श्रालेख्य, गणितादि बहत्तर कलामें प्रवीण हों उन्हें विद्याकर्म आर्य कहते हैं ।