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________________ अध्याय ३ सूत्र ३६ ३२६ औषधिऋद्धि है ॥ ३ ॥ जिनके कान दांत, नाक और नेत्रका मल ही सव रोगोंके निराकरण करनेमे समर्थ हो सो मलऔषधिऋद्धि है ॥ ४ ॥ जिनकी बीट-टट्टी तथा मूत्र ही औषधिरूप हो सो बोटऔषधिऋद्धि है ॥ ५॥ जिनका अंग उपांग नख, दाँत, केशादिकके स्पर्श होनेसे ही सब रोगोंको दूर कर देता है सो सर्वोषधिऋद्धि है ॥ ६ ॥ तीन जहरसे मिला हुआ थाहार भी जिनके मुखमें जाते ही विष रहित हो जाय तथा विषसे व्याप्त जीवका जहर जिनके वचनसे ही उतर जाय वो आस्याविषग्रीषधिऋद्धि है ॥७॥ जिनके देखनेसे महान विषधारी जीवका विष जाता रहे तथा किसी के विष चढा हो तो उतर जाय ऐसी ऋद्धि सो दृष्टिविपऋद्धि है ॥ ८ ॥ ९. सातवीं रसऋद्धिका स्वरूप रसऋद्धि ६ प्रकार की है। (१) आस्यविष (२) दृष्टिविष (३) क्षीर (४) मधुस्रावी (५) घृतस्रावी और (६ ) अमृतस्रावी उनका स्वरूप निम्नप्रकार है प्रकृष्ट तपवाले योगी कदाचित् क्रोधी होकर कहे कि 'तू मर जा' तो उसी समय विष चढने से मर जाय सो आस्यविषरसऋद्धि है ॥१॥ कदाचित् क्रोधरूपी दृष्टिके देखने से मर जावे सो दृष्टिविषऋद्धि है ॥२॥ वीतरागी मुनिके ऐसी सामर्थ्य होय कि उनके क्रोधादिक उत्पन्न न हो और उनके हाथमें प्राप्त हुआ नीरस भोजन क्षीररसरूप हो जाय तथा जिनके वचन दुर्बलको क्षीरके समान पुष्ट करे सो क्षीररसऋद्धि है ॥ ३ ॥ ऊपर कहा हुआ भोजन, मिष्ट रसरूप परिणमित हो जाय सो मधुस्रावीरसऋद्धि है ॥ ४॥ तथा वह भोजन, घृतरसरूप परिणमित हो जाय सो घृतस्रावीरसऋद्धि है ॥ ५॥ "भोजन अमृत रसरूप परिणमित हो जाय सो अमृतस्रावीरसऋद्धि है ॥ ६ ॥ इसप्रकार ६ प्रकार की रसऋद्धि है। १०. आठवीं क्षेत्रऋद्धिका स्वरूप क्षेत्रऋद्धि दो प्रकार की है। (१) अक्षीणमहान और ( २) ४२
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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