________________
तो प्रत्यक्ष प्रमान रूपो है याको सीप कोन कहै मेरी दृष्टिविप तो रूपो सुझतु है तातै सर्वथा प्रकार यह रूपो है सो तीनी पुरुष ती वा सीप को स्वरूप जान्यो नाही। ताते तीनों मिथ्यावादी । अब चोथो पुरुप वोल्यो कि यह तो प्रत्यक्ष प्रमान सीप को खण्ड है यामे कहीं धोखो, सीप सीप सीप, निरधार सीप, याको जु कोई और वस्तु कहै सो प्रत्यक्ष प्रमाण भ्रामक अथवा अंध, तैसें सम्यग्दृष्टिको स्वपरस्वरूपविष न संसे है, न विमोह, न विभ्रम, यथार्थदृष्टि है तातै सम्यग्दृष्टि जीव अन्तरदृष्टि करि मोक्षपद्धति साधि जाने । बाह्यभाव बाह्यनिमिचरूप * मान; सो निमित्त नानारूप है, एकरूप नाहीं, अन्तरदृष्टिके प्रमान मोक्षमार्ग साथै सम्यग्ज्ञान स्वरूपाचरन की कनिका जागे मोक्षमार्ग सांचौ । मोक्षमार्ग को साधिवो यह व्यवहार, शुद्धद्रव्य+अक्रियारूप सो निश्चे। ऐसे
* व्यवहारनय अशुद्ध द्रव्यको कहनेवाला होनेसे जितने अलग २, एक २ भावस्वरूप अनेक भाव दिखाये हैं ऐसा वह विचित्र अनेक वर्णमालाके समान होनेसे, जानने में आता हुआ उसकाल प्रयोजनवान है, परन्तु उपादेयरूपसे प्रयोजनवान नही है ऐसी समझ पूर्वक सम्यग्दृष्टि जीव अपने चारित्रगुणकी पर्यायमें आशिक शुद्धताके साथ जो शुभप्रश है उसे वाह्यभाव और बाह्य निमित्तरूपसे जानते हैं । शास्त्र में कही पर उस शुभको शुद्ध पर्यायका व्यवहारनयसे साधक कहा हो तो उसका अर्थ वे वाह्य निमित्तमात्र है-हेय है ऐसा मानता है, अतः वे आश्रय करने योग्य या हितकर न मानकर बाधक ही है ऐसा मानता है।
-पाटनी ग्रन्थमाला श्री प्रवचनसार गा.६४ में "अविचलित चेतनामात्र आत्मव्यवहार है" ऐसा टीकामें पृष्ठ १११-१२ में कहा है, उसे यहाँ 'मोक्षमार्ग साधिवो उसे व्यवहार' ऐसा निरूपण किया।
___ +-कालिक एकरूप रहनेवाला जो प्रात्माका ध्र व ज्ञायकभाव है वह भतार्थ-निश्चयनयका विषय होनेसे उसे 'शुद्धद्रव्य अक्रियारूप' कहा गया है, उसे परमपारिणामिक भाव भी कहने में प्राता है और वह नित्य सामान्य द्रव्यरूप होनेसे निष्क्रिय है तथा क्रिया पर्याय है इससे व्यवहारनयका विषय है।