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सुनो - मूढ जीव आगमपद्धतिको व्यवहार कहै, अध्यात्म पद्धतिको निश्चय कहै तातें आगम श्रङ्ग एकान्तपनी साधिकै मोक्षमार्ग दिखावै, अध्यात्मअङ्गको ÷व्यवहारसे ( भी ) न जाने, यह मूढदृष्टिको स्वभाव, वाही याही भाँति सू काहेते ? — याते जू - श्रागमअंग बाह्य क्रियारूप प्रत्यक्ष प्रमाण है, ताको स्वरूप साधिवो सुगम ता (वे ) बाह्य क्रिया करतो संतौ आपकू ं मूढ़ जीव मोक्षको अधिकारी माने, ( परन्तु ) अन्तरगर्भित अध्यात्मरूप क्रिया सो अन्तरदृष्टि ग्राह्य है सो क्रिया मूढ जीव न जाने | अन्तरदृष्टिके अभावसो अन्तरक्रिया दृष्टिगोचर आवे नाही, तातें मिथ्यादृष्टि जीव मोक्षमार्ग साधिवेको असमर्थ है ।
(२) अथ सम्यक दृष्टिको विचार सुनौ
सम्यग्दृष्टि कहा ( कौन ) सो सुनो - संशय, विमोह, विभ्रम ए तीन भाव जामैंनाही सो सम्यग्दृष्टि । संशय, विमोह, विभ्रम कहा -ताको स्वरूप दृष्टान्त करि दिखायतु है सो सुनो-जैसे च्यार पुरुष काहु एकस्थान विषं ठाढे | तिन्ह चारि हूँ के आगे एक सीपको खण्ड किन्ही ओर पुरुषने श्रानि दिखायो । प्रत्येक ते प्रश्न कीनो कि यह कहा है ? सीप है के रूपो है, प्रथम ही एक पुरुष संशैवालो बोल्यो- कछु सुध नाही परत, किधी सीप है किधौ रूपो है मोरी दिष्टिविषे याको निरधार होत नाहि ने । भी दूजो पुरुष विमोहवालो बोल्यो कि कछु मोहि यह सुधि नाही कि तुम सीप कौनसौ कहतु है रूपी कौनसी कहतु है मेरी दृष्टिविषै कछु श्रावतु नाही ताते हम नांहि जानत कि तू कहा कहतु है अथवा चुप ह्व रहे बोल नाही गहलरूप सौ । भी तीसरो पुरुष विभ्रमवालो बोल्यो कि - यह
* - श्रागम पद्धति - दो प्रकार से है - (१) भावरूप पुद्गलाकार आत्माकी अशुद्ध परिणतिरूप-अर्थात् दया, दान, पूजा, अनुकम्पा, अनत तथा अणुव्रत - महाव्रत, मुनि २८ मूलगुणोका पालनादि शुभभावोरूप जीवके मलिन परिणाम । (२) द्रव्यरूप पुद्गल परिणाम |
:-अन्तर्दृष्टि द्वारा मोक्षपद्धतिको साधना सो अध्यात्म अंगका व्यवहार है ।