SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१८ मोक्षशास्त्र mm " N ५ १२० वर्ष २० वर्ष ७ हाथ २ हाथ ६ २० वर्ष १५ वर्ष २ हाथ १ हाथ मनुष्यों का आहार काल आहार १ चौथे दिन बेर के बराबर एक दिनके अंतरसे बहेड़ा) तीसरे काल तक भरत (फल) के बराबर ऐरावत क्षेत्रमे भोगभूमि रहती एक दिनके अंतरसे आंवला ) बराबर रोज एक बार कई बार ६ अति प्रचुरवृत्ति, मनुष्य नग्न, मछली इत्यादिके आहार, मुनिश्रावकोंका अभाव, धर्मका नाश ॥ २७ ॥ अन्य भूमियोंकी व्यवस्था ताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिताः॥२८॥ अर्थ-भरत और ऐरावत क्षेत्रको छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में एक ही अवस्था रहती है-उनमें कालका परिवर्तन नही होता ॥ २८ ॥ हैमवतक इत्यादि क्षेत्रोंमें आयु एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवतकहारिवर्षकदेव कुरवकाः ॥ २६ ॥ अर्थ-हैमवतक, हारिवर्षक और देवकुरु ( विदेहक्षेत्रके अन्तर्गत एक विशेष स्थान ) के मनुष्य, तिथंच क्रमसे एक पल्य, दो पल्य और तीन पल्यकी आयुवाले होते हैं।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy