________________
३११
अध्याय ३ सूत्र १३-१४-१५-१६-१७
कुलाचलों का विशेष स्वरूप मणिविचित्रपार्था उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः ॥१३॥
अर्थ-इन पर्वतोका तट चित्र-विचित्र मणियोंका है और ऊपर नीचे तथा मध्यमें एक समान विस्तारवाला है ॥ १३॥
कुलाचलों के ऊपर स्थित सरोवरों के नाम पद्ममहापद्मतिगिञ्छकेशरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका हृदास्तेषामुपरि ॥ १४ ॥
अर्थ-इन पर्वतोके ऊपर क्रमसे १-पद्म, २-पहापद्म, ३-तिगिञ्छ, ४-केशरि, ५-महापुण्डरीक और ६-पुण्डरीक नामके ह्रद-सरोवर हैं ॥१४॥
प्रथम सरोवर की लम्बाई-चौड़ाई प्रथमो योजनसहसायामस्तदर्द्धविष्कम्भो हृदः ॥१५॥
अर्थ-पहिला पद्म सरोवर एक हजार योजन लम्बा और लंबाई से आधा अर्थात् पांचसो योजन चौड़ा है ॥ १५ ॥
प्रथम सरोवर की गहराई (ऊँडाई)
दशयोजनावगाहः ॥१६॥ मर्थ–पहिला सरोवर दश योजन अवगाह ( गहराई-ऊँडाई ) वाला है ॥ १६ ॥
उसके मध्यमें क्या है ? तन्मध्ये योजनं पुष्करम् ॥ १७॥ अर्थ-उसके बीच में एक योजन विस्तारवाला कमल है ॥ १७ ॥