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मोक्षशास्त्र के योग्य होते हैं, और तब उन जीवोंके ज्ञानका विकास भी उस उस क्षेत्रमें रहनेवाले जीवों तथा पदार्थोके जाननेके योग्य होता है। नरकगतिका भव अपने पुरुषार्थके दोष से बँधा था इसलिये योग्य समयमें उसके फलरूपसे जीवकी अपनी योग्यताके कारण नारकीका क्षेत्र संयोगरूपसे होता है; कर्म उसे नरकमें नही ले जाता । कर्मके कारण जीव नरकमें जाता है यह कहना मात्र उपचार कथन है, जीवका कर्मके साथका निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध बताने के लिये शास्त्रों में वह कथन किया गया है, नहीं कि वास्तवमें जड़कर्म जीवको नरकमें ले जाते हैं। वास्तवमें कर्म जीवको नरकमें ले जाते हैं यह मानना मिथ्या है।
११. सागर-काल का परिमाण १-सागर दश करोड़xकरोड़ अद्धापल्य ।
१. अद्धापल्य-एक गोल खड्डा जिसका व्यास( Diametre) एक योजन (=२००० कोस ) और गहराई भी उतनी ही हो उसमें उत्तम भोगभूमिके सात दिन के भेडे के बच्चे के बालोंसे ठसाठस भरकर के उसमे से प्रति सौ वर्ष में एक बाल निकालने पर जितने समयमें गड्ढा खाली हो जाय, उतने समयका एक व्यवहारकल्प है, ऐसे असंख्यात व्यवहारकल्प= एक उद्धारपल्य । असंख्यात उद्धार पल्य-एक अद्धापल्य ।
इसप्रकार अधोलोकका वर्णन पूरा हुआ ॥ ६ ॥
मध्यलोकका वर्णन
कुछ द्वीप समुद्रों के नाम जम्बूद्वीपलवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः ॥७॥
अर्थ-इस मध्यलोकमें अच्छे अच्छे नाम वाले जम्बूद्वीप इत्यादि द्वीप, और लवरणसमुद्र इत्यादि समुद्र है।