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________________ ३०० मोक्षशास्त्र अधोलोकका वर्णन सात नरक-पृथिवियाँ रत्नशर्कराबालुकापङ्कधूमतमोमहातमःप्रभा भूमयो घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताऽधोऽधः ॥ १॥ ___ * अर्थ:-अधोलोकमै रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा, और महातमप्रभा ये सात भूमियां हैं औरक्रमसे नीचे २ घनोदधिवातवलय, धनवातवलय, तनुवातवलय तथा प्राकाशका आधार है। टीका १. रत्नप्रभा पृथ्वीके तीन भाग हैं-खरभाग, पंकभाग और अबहुलभाग । उनमें से ऊपरके पहिले दो भागोंमें व्यन्तर तथा भवनवासी देव रहते है, और नीचेके अव्बहुलभागमें नारकी रहते हैं। इस पृथ्वीका कुल विस्तार एक लाख अस्सी हजार योजन है। [२००० कोसका एक योजन होता है। २. इन पृथ्वियोंके रूढ़िगत नाम ये हैं-१-धम्मा, २-वंशा, ३मेघा, ४-अंजना, ५-अरिष्टा, ६-मघवी और ७-माधवी है। ३-अम्बु (घनोदधि ) वातवलय-वाष्पका घना वातावरण, धनवातवलय-घनी हवाका बातावरण । तनुवातवलय-पतली हवाका वातावरण । वातवलय-वातावरण । 'आकाश' कहनेसे यहाँ प्रलोकाकाश समझना चाहिए ॥१॥ ** इस अध्यायमें भूगोल सबंधी वर्णन होनेसे, पहिले दो मध्यायोकी भांति सूत्रके शब्द पृथक् करके अर्थ नहीं दिया गया है किन्तु पूरे सूत्रका सीधा अर्थ दिया गया है।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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