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मोक्षशास्त्र
अब जो उस शुभभावके समय सम्यग्दृष्टिके शुद्ध भाव बढ़ता है वह अभिप्रायमें परमपारिणामिकभावका भाश्रय है उसीके वलसे बढ़ता है । अन्य प्रकारसे कहा जाय तो सम्यग्दर्शनके बलसे वह शुद्धभाव बढ़ते हैं किन्तु शुभराग या परद्रव्यके अबलंबनसे शुद्धता नहीं बढ़ती 1
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प्रश्न – देव गुरु शास्त्रको निमित्तमात्र कहा है और उनके अवलंबन को उपचारमात्र कहा है, इसका क्या कारण है ?
उचर- - इस विश्व में अनन्त द्रव्य हैं, उनमेसे रागके समय छद्मस्थ जीवका झुकाव किस द्रव्यकी ओर हुआ यह बतानेके लिये उस द्रव्यको 'निमित्त' कहा जाता है । जीव अपनी योग्यतानुसार जैसा परिणाम ( कार्य ) करता है वैसा अनुकूल निमित्तपनेका परद्रव्यमें उपचार किया जाता है इसप्रकार जीव शुभरागका आलंबन करे तो देव-गुरु-शास्त्र निमित्तमात्र है और उसका आलम्बन उपचारमात्र है ।
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निमित्त नैमित्तिक संबंध जीवको सच्चा ज्ञान करनेके लिये है, ऐसी मिथ्या मान्यता करनेके लिये नहीं कि- 'धर्म करनेमें किसी समय निमित्त की मुख्यता होती है । जो जीव सम्यग्दर्शन प्रगट करना चाहते हैं उन्हें स्वतंत्रतारूप निमित्त नैमित्तिक संबंधके स्वरूपका यथार्थज्ञान कर लेना चाहिये । उस ज्ञानकी आवश्यकता इसलिये है कि यदि वह ज्ञान न हो तो जीवका ऐसा अन्यथा झुकाव बना रह सकता है कि- किसीसमय निमित्तकी मुख्यतासे भी कार्य होता है, और इससे उसका अज्ञानपना दूर नही होगा । और इस निमित्ताधीनदृष्टि; पराधीनता स्वीकार करनेवाली संयोगदृष्टि है जो संसारका मूल है इससे उसके अपार संसार भ्रमरण चलता रहेगा ।
६. इन पाँच भावोंके साथ इस अध्यायके सूत्र कैसे संबंध रखते हैं, इसका स्पष्टीकरण
सूत्र - १. यह सूत्र पाँचों भाव बतलाता है, उसमें शुद्ध द्रव्यार्थिकनयके विषयरूप अपने पारिणामिक भावके आश्रयसे ही धर्म होता है ।
सूत्र २ - ६. यह सूत्र पहिले चार भावोंके भेद बतलाते है । उनमें से तीसरे सूत्र में औपशमिकभावके भेदोंका वर्णन करते हुए पहिले सम्यक्त्व