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मोक्षशास्त्र
निर्णय किया है । [ सूत्र ३५ तक ] पाँच शरीरोंके नाम बतलाकर उनकी सूक्ष्मता और स्थूलताका स्वरूप कहा है, और वे कैसे उत्पन्न होते हैं इसका निरूपण किया है [ सूत्र ४६ तक ] फिर किस जीवके कोनसा वेद होता है यह कहा है [ सूत्र ५२ तक ] फिर उदयमरण और उदीरणामरणका नियम बताया है [ सूत्र ५३ ]
जबतक जीवकी अवस्था विकारी होती है तबतक ऐसे परवस्तुके संयोग होते है; यहाँ उनका ज्ञान कराया है; और सम्यग्दर्शन प्राप्त करके, वीतरागता प्राप्त करके संसारी मिटकर मुक्त होनेके लिये बतलाया है । २. पारिणामिकभावके सम्वन्धमें
जीव और उसके अनन्तगुरण त्रिकाल प्रखण्ड अभेद हैं इसलिये वे पारिणामिकभावसे है । प्रत्येक द्रव्यके प्रत्येकगुरणका प्रतिक्षरण परिणमन होता है; और जीव भी द्रव्य है इसलिए तथा उसमे द्रव्यत्व नामका गुण है इसलिए प्रतिसमय उसके अनन्तगुरणों का परिणमन होता रहता है, उस परिणमनको पर्याय कहते हैं । उसमें जो पर्यायें अनादिकालसे शुद्ध हैं वे भी पारिणामिक भावसे हैं ।
जीवकी अनादिकाल से संसारी अवस्था है यह बात इस अध्यायके १० वें सूत्रमे कही है; क्योंकि जीव अपनी अवस्थामे अनादिकालसे प्रतिक्षण नया विकार करता आ रहा है, किन्तु यह ध्यान रहे कि उसके सभी गुणोंकी पर्यायोंमे विकार नही होता किन्तु अनन्त गुरणोंमेसे बहुतसे कम गुणोंकी अवस्था में विकार होता है । जितने गुणोकी अवस्थामे विकार नहीं होता उतनी पर्याये शुद्ध हैं ।
प्रत्येक द्रव्य सत् है इसलिए उसकी पर्यायमें प्रतिसमय उत्पाद व्यय और धौव्यत्वको पर्याय अवलम्बन करती हैं । उन तीन अंशोंमेसे जो सदृशतारूप धीव्य अंश है वह अंश अनादि अनन्त एक प्रवाहरूप है, धीव्य पर्याय भी पारिणामिकभावसे है ।
इससे निम्नप्रकार पारिणामिकभाव सिद्ध हुआ
द्रव्यका त्रिकालत्व तथा अनन्तगुरण और उनकी पर्यायोंका एक