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मोक्षशास्त्र अर्थ-[ जीवस्य ] मुक्त जीवकी गति [अविनहा ] वक्रता रहित सीधी होती है।
टीका
सूत्रमे 'जीवस्य' शब्द कहा गया है किंतु पिछले सूत्र में संसारी जीव का विषय था इसलिये यहाँ 'जीवस्य' का अर्थ 'मुक्त जीव' होता है।
इस अध्यायके पच्चीसवें सूत्रमें विग्रहका अर्थ 'शरीर' किया था और यहां उसका अर्थ 'वक्रता' किया गया है; विग्रह शब्दके यह दोनों अर्थ होते हैं । पच्चीसवें सूत्र में श्रेणिका विषय नही था इसलिये वहाँ 'वक्रता' अर्थ लागू नहीं होता, किंतु इस सूत्रमें श्रेणिका विषय होनेसे 'अविग्रहा' का अर्थ वक्रता रहित (मोड़ रहित ) होता है ऐसा समझना चाहिये। मुक्त जीव श्रेरिणबद्धगतिसे एक समयमें सीधे सात राजू कार गमन करके सिद्ध क्षेत्रमें जाकर स्थिर होते हैं ॥ २७ ॥
संसारी जीवोंकी गति और उसका समय विग्रहवती च संसारिणः प्राकचतुर्व्यः ॥ २८ ॥
अर्थ-[ संसारिणः ] संसारी जीवकी गति [ चतुर्म्यः प्राक् ] चार समयसे पहिले [ विग्रहवती च ] वक्रता-मोड़ सहित तया रहित होती है।
टीका १-संसारी जीवकी गति मोडासहित और मोड़ारहित होती है। यदि मोड़ारहित होती है तो उसे एक समय लगता है, एक मोड़ा लेना पड़े तो दो समय, दो मोड़ा लेना पड़े तो तीन समय और तीन मोड़ा लेना पड़े तो चार समय लगते है। जोव चौथे समयमे तो कहीं न कही नया शरीर नियमसे धारण कर लेता है, इसलिये विग्रहगतिका समय अधिकसे अधिक चार समय तक होता है। उन गतियोके नाम यह हैं:-१-ऋजुगति (ईषुगति) २-पाणिमुक्तागति, ३-लांगलिकागति और ४-गौमूत्रिकागति ।।
२-एक परमाणुको मंदगतिसे एक आकाशप्रदेशसे उसीके निकट