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अध्याय २ सूत्र १२-१३
संसारी जीवोंके अन्य प्रकार से भेद
संसारिणस्त्रसस्थावराः ॥ १२ ॥
अर्थ - [ संसारिणः ] संसारीजीव [ त्रस ] त्रस और [स्थावराः ] स्थावरके भेदसे दो प्रकारके हैं ।
टीका
१ - जीवोंके यह भेद भी अवस्थादृष्टिसे किये गये हैं ।
२ -- जीवविपाकी त्रस नामकर्मके उदयसे जीव त्रस कहलाता है और जीवविपाको स्थावर नामकर्मके उदयसे जीव स्थावर कहलाता है | त्रसजीवोंके दो से लेकर पांच इन्द्रियाँ तक होती है और स्थावर जीवोंके मात्र एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है । ( यह परिभाषा ठीक नहीं है किजो स्थिर रहता है सो स्थावर है और जो चलता फिरता है सो त्रस है ) ३- दो इन्द्रियसे अयोग केवली गुरणस्थान तकके जीव त्रस हैं, मुक्तजीव त्रस या स्थावर नही हैं क्योंकि यह भेद ससारी जीवोंके है ।
४ - प्रश्न - यह अर्थ क्यों नहीं करते कि- जो डरे - भयभीत हो अथवा हलन चलन करे सो त्रस है और जो स्थिर रहे सो स्थावर है ? उत्तर - यदि हलन चलनकी अपेक्षासे त्रसत्व और स्थिरताकी अपेक्षासे स्थावरत्व हो तो (१) गर्भ में रहनेवाले, अंडे में रहनेवाले, मूर्छित और सोये हुए जीव हलन चलन रहित होनेसे त्रस नही कहलायेंगे, और (२) वायु, अग्नि तथा जल एक स्थानसे दूसरे स्थान पर जाते हुए दिखाई देते हैं तथा भूकंप इत्यादिके समय पृथ्वी कांपती है और वृक्ष भी हिलते है, वृक्षके पत्ते हिलते है इसलिये उनके स्थावरत्व नहीं होनेसे कोई भी जीव स्थावर नहीं माना जायगा, जीव स्थावर नही रहेगा ॥ १२ ॥
रहेगा, और ऐसा और कोई भी
स्थावर जीवोंके भेद पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावराः ॥ १३ ॥ अर्थ - [ पृथिवी अप् तेजः वायुः वनस्पतयः ] पृथ्वीकायिक, जल