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मोक्षशास्त्र २. मनवाले सैनीजीव सत्य-असत्यका विवेक कर सकते हैं।
३. मन दो प्रकार के होते हैं-द्रव्यमन और भावमन । पुद्गल द्रव्यके मनोवर्गणा नामक स्कन्धोंसे बना हुआ पाठ पाँखुड़ीवाले फुल्या कमलके आकाररूप मन हृदयस्थानमें है, वह द्रव्यमन है। वह सूक्ष्मपुद्गल स्कन्ध होने से इन्द्रियग्राही नही है। आत्माकी विशेष प्रकारकी विशुद्धि भावमन है; उससे जीव शिक्षा ग्रहण करने, क्रिया ( कृत्य) को समझने, उपदेश तथा आलाप ( Recitation) के योग्य होता है। उसके नामसे बुलाने पर वह निकट आता है।
४. जो हितमें प्रवृत्त होने की अथवा अहितसे दूर रहने की शिक्षा ग्रहण करता है वह सैनी है, और जो हित-अहितकी शिक्षा, क्रिया, उपदेश इत्यादि को ग्रहण नहीं करता वह असैनी है।
५. सैनी जीवोके भावमनके योग्य निमित्तरूप वीर्यान्तराय तथा मन-नो इन्द्रियावरण नामक ज्ञानावरण कर्मका क्षयोपशम स्वयं होता है।
६. द्रव्यमन-जड़ पुल है, वह पुदल विपाकीकर्म-उदयके फलरूप है । जीवकी विचारादि क्रियामें भावमन उपादान है और द्रव्यमन निमित्तमात्र है । भावमनवाले प्राणी मोक्षके उपदेशके लिये योग्य हैं। तीर्थकर भगवान या सम्यग्ज्ञानियोंसे उपदेश सुनकर सैनी मनुष्य सम्यग्दर्शन प्रगट करते हैं, सैनी तिर्यंच भी तीर्थंकर भगवानका उपदेश सुनकर सम्यग्दर्शन प्रगट करते हैं, देव भी तीर्थंकर भगवानका तथा सम्यग्ज्ञानियोंका उपदेश सुनकर सम्यग्दर्शन प्रगट करते हैं नरकके किसी जीवके पूर्वभवके मित्रादि सम्यग्ज्ञानी देव होते हैं वे तीसरे नरक तक जाते है और उनके उपदेशसे तीसरे नरक तकके जीव सम्यग्दर्शन प्रगट करते है।
चौथेसे सातवें नरकतकके जीव पहिलेके सत्समागमके सस्कारोंको याद करके सम्यग्दर्शन प्रगट करते है, वह निसर्गज सम्यग्दर्शन है। पहिले सत्समागमके संस्कार प्राप्त मनुष्य सैनीतिर्यंच और देव भी निसर्गज सम्यग्दर्शन प्रगट कर सकते हैं ॥ ११ ॥