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मोक्षशास्त्र
रोक्त प्रकारसे उपचारसे यह परिवर्तन लागू होते हैं । नित्यनिगोदको अव्यवहार राशिके ( निश्चय राशिके ) जीव भी कहते हैं ।
१६. मनुष्यभव सफल करनेके लिये विशेष लक्षमें लेने योग्य विषयः -
१. अनादिकाल से लेकर पहिले तो इस जीवको नित्य - निगोदरूप शरीरका संबंध होता था, उस शरीरको आयु पूर्ण होने पर जीव मरकर पुन: पुन: नित्यनिगोद शरीरको ही धारण करता है । इसप्रकार अनंतानंत जीवराशि अनादिकालसे निगोदमें ही जन्म मरण करती है |
२. निगोद में से ६ महिना और श्राठ समयमें ६०८ जीव निकलते हैं । वे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और प्रत्येक वनस्पतिरूप एकेन्द्रिय पर्यायोंमें अथवा दो से चार इंद्रियरूप शरीरोंमें या चार गतिरूप पंचेन्द्रिय शरीरोंमें भ्रमण करते है और फिर पुनः निगोद शरीरको प्राप्त करते हैं, (यह इतर निगोद है) ३. जीवको त्रसमें एक ही साथ रहनेका उत्कृष्ट काल मात्र दो हजार सागर है । जीवको अधिकांश एकेन्द्रिय पर्याय और उसमें भी अधिक समय निगोद में ही रहना होता है वहाँ से निकलकर त्रसशरीरको प्राप्त करना 'काकतालीयन्यायवत्' होता है । समें भी मनुष्यभव पाना तो च.चित् ही होता है ।
४. इसप्रकार जीवकी मुख्य दो स्थितियाँ हैं— निगोद और सिद्ध । बीचका त्रस पर्यायका काल तो बहुत ही थोड़ा और उसमें भी मनुष्यत्वका काल तो अत्यन्त स्वत्पातिस्वल्प है ।
५. ( ग्र) संसार मे जीवको मनुष्यभवमें रहनेका काल सबसे थोडा है । ( व ) नारकीके भवोमें रहनेका काल उससे असंख्यातगुरणा है (क) देवके भवोंमें रहनेका काल उससे (नारकी से ) असंख्यातगुणा है । शोर (ड) - तिर्यंचभवोमे (मुख्यतया निगोदमे) रहनेका काल उससे (देवसे) अनंतगुरणा है |
इससे सिद्ध होता है कि जीव अनादिकालसे मिथ्यात्वदशामे शुभ