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मोक्षगास्त्र होनेके लिये पार हो; और तत्पश्नात् एक २ अनुभागबन्धस्थानमंसे एक कपायस्थान होनेके लिये पार होना चाहिगे, भोर एक मान्यस्थितियय होनेके लिये एक २ कपायस्थानमसे पार होना नाहिये।
(५) तत्पश्चात् उस जघन्यस्थितिबन्धमें एक एक समय अधिक करके ( छोटेसे छोटे जघन्यवन्धसे मागे प्रत्येक नगे ) बढ़ते जाना चाहिये । इसप्रकार आठों कर्म और (मिच्यादृष्टिी योग्य ) सभी उत्तर कर्मप्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति पूरी हो तव एक मावपरिवर्तन पूर्ण होता
है।
(६) उपरोक्त पैरा ३ में कथित जघन्यस्थितिबंधको तया परा २ में कथित सर्वजधन्य कपायभावस्थानको और पैरा १ में कथित अनुभागवन्चस्थानको प्राप्त होनेवाला उसके योग्य सर्वजघन्य योगस्थान होता है। अनुभाग A, कषाय B, और स्थिति C, इन तीनोंका तो जघन्य हो बंध होता है किन्तु योगस्थान वदलकर जघन्य योगस्थानके बाद तीसरा योगस्थान होता है और अनुभागस्थान कपायस्थान B,तथा स्थितिस्यान C, जघन्य ही बंधते हैं; पश्चात् चौथा, पांचवां, छट्ठा, सातवा, माठवां, इत्यादि योगस्थान होते २ क्रमशः असंख्यात प्रमाणतक वदले फिर भी उन्हें इसी गणना में नहीं लेना चाहिये, अथवा किसी दो जघन्ययोग स्थानके वीचमे अन्य कषायस्थान A- अन्य अनुभागस्थान B. या अन्य योगस्थान C आ जाय तो उसे भी गणनामे नही लेना चाहिये ।
भाव परिवर्तनका कारण मिथ्यात्व है इस सम्बन्धमे कहा है किसव्या पयडिद्विदिओ अणुभाग पदेस बंधठाणादि । मिच्छत्त संसिदेण य भमिदा पुण भाव संसारे ॥१॥
अर्थ-समस्त प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागवंध, और प्रदेशवंधके स्थानरूप मिथ्यात्वके संसर्गसे जीव निश्चयसे ( वास्तवमे ) भावसंसारमें भ्रमण करता है।