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प्रश्न-किस अपेक्षासे वह उपचार किया है ।
उत्तर-व्यवहार चारित्रकी साथ निश्चय चारित्र हो तो वे ( शुभभाव ) निमित्तमात्र है उतना ज्ञान करानेकी अपेक्षा वह उपचार किया है ऐसा समझना।
प्रश्न-उपचार भी कुछ हेतुसे किया जाता है, तो यहाँ वह हेतु क्या है ?
उत्तर-निश्चय चारित्रके धारक जीवको छठवां गुणस्थानकमें वैसा ही शुभराग होता है परन्तु ऐसा व्यवहारसे विरुद्ध प्रकारका राग कभी भी होता ही नही, कारण कि उस भूमिकामें तीन प्रकारकी कषाय शक्तिका अभाव सहित महामंद प्रशस्तराग होता है, उसे महा मुनि नही छूटते जानकर उनका त्याग करते नही, भावलिंगी मुनिओंको कदाचित् मंदरागके उदयसे व्यवहार चारित्रका भाव होता है, परन्तु उस शुभ भावको भी हेय जानकर दूर करना चाहते हैं और उस उस कालमे ऐसा ही राग होना सम्भव है-ऐसा राग बलजोरीसे-(-अपनी स्वसन्मुखताकी कमजोरीसे ) आये विना रहता नहीं किन्तु मुनि उसे दूरसे अतिक्रान्त कर जाते हैं । इस हेतुसे यह उपचार किया है ऐसा समझना। इसप्रकार सम्यग्दृष्टिके दृढ़श्रद्धा होती है।
इस सम्बन्धमें मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ३७६-७७ में कहा है कि
"बहुरि नीचली दशाविर्षे केई जीवनिकै शुभोपयोग अर शुद्धोपयोगका युक्तपना पाइए है । तातें उपचार करि व्रतादिक शुभोपयोग कौं मोक्षमार्ग कया है । वस्तु विचार ते शुभोपयोग मोक्षका घातक ही है । जाते बन्धको कारण सोई मोक्षका घातक है ऐसा श्रद्धान करना । बहुरि शुद्धोपयोग ही की उपादेय मानि ताका उपाय करना । शुभोपयोगअशुभोपयोगको हेय जानि तिनके त्यागका उपाय करना । जहाँ शुद्धोपयोग न होय सके, तहाँ अशुभोपयोगको छोड़ि शुभ ही विष प्रवर्त्तना । जातं शुभोपयोगतै अशुभोपयोगमें अशुद्धताकी अधिकता है।