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मोक्षशास्त्र (२) सर्वज्ञ भगवान् अपेक्षित धर्मोको नहीं जानते। ... ?
(३) केवली भगवान् भूत-भविष्यत् पर्यायोंको सामान्यरूपसे जानते हैं किन्तु विशेषरूपसे नहीं जानते ।
(४) केवली भगवान् भविष्यत् पर्यायोंको समग्ररूपसे (समूहरूपसे) जानते हैं, भिन्न भिन्नरूपसे नही जानते ।।
(५) ज्ञान सिर्फ ज्ञानको ही जानता है ।
(६) सर्वज्ञके ज्ञानमें पदार्थ झलकते हैं, किन्तु भूतकाल तथा भविष्यकालकी पर्यायें स्पष्टरूपसे नहीं झलकती।-इत्यादिक मन्तव्य सर्वज्ञको अल्पज्ञ मानने समान है।
[केवलज्ञान (-सर्वज्ञका ज्ञान ) द्रव्य-पर्यायोंका शुद्धत्व
अशुद्धत्व आदि अपेक्षित धर्मोको भी जानता है। ]
(११) श्री समयसारजीमें अमृतचंद्राचार्य कृत कलश नं० २ में केवलज्ञानमय सरस्वतीका स्वरूप इसप्रकार कहा है, '..वह मूर्ति ऐसी है कि जिसमे अनन्त धर्म है ऐसा, और प्रत्यक्-परद्रव्योंसे, परद्रव्योंके गुण पर्यायोंसे भिन्न तथा परद्रव्यके निमित्तसे हुए अपने विकारोंसे कथंचित् भिन्न एकाकार ऐसा जो आत्मा उसके तत्त्वको अर्थात् असाधारण सजातीय विजातीय द्रव्योंसे विलक्षण निजस्वरूपको पश्यंती-देखती है।'
भावार्थ-xxx.. ...उनमें अनन्त धर्म कौन कौन हैं ? उसका उत्तर कहते हैं-जो वस्तुमे सत्पना, वस्तुपना, प्रमेयपना, प्रदेशपना, चेतनपना, अचेतनपना, मूर्तिकपना, अमूर्तिकपना इत्यादि धर्म तो गुरण हैं और उन गुणोंका तीनों कालोंमें समय समयवर्ती परिणमन होना पर्याय है, वे अनन्त है । तथा एकपना, अनेकपना, नित्यपना, अनित्यपना, भेदपना, अभेदपना, शुद्धपना, अशुद्धपना आदि अनेक धर्म हैं वे सामान्यरूप तो वचन गोचर हैं और विशेषरूप वचनके अविषय हैं, ऐसे वे अनन्त है सो ज्ञानगम्य है (-अर्थात् केवलज्ञानके विषय हैं । )
[श्री रायचन्द जैन शास्त्रमाला मुंबईसे प्रकाशित स. सार पत्र ४];