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मोक्षशास्त्र यहाँ प्रत्येक शरीर जीव दो प्रकारके हैं-बादर निगोद प्रतिष्ठित और बादर निगोद अप्रतिष्ठित । ये सब स्थावरकायिक जीव भी प्रत्येक दो प्रकारके हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । अपर्याप्त दो प्रकारके हैं लब्ध्यपर्याप्त और निर्वृत्त्यपर्याप्त । इनमेंसे वनस्पतिकायिक अनन्त प्रकारके और शेष असंहयात प्रकारके है । केवली भगवान् समस्त लोकमें स्थित इन सब जीवोंको जानते हैं, यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
[सर्व भावोंको जानते हैं:-] जीव, अजीव, पुण्य, पाप, प्रास्रव, संवर, बन्ध, और मोक्षके भेदसे पदार्थ नौ प्रकारके हैं । उनमेसे जीवोंका कथन कर आये हैं । अजीव दोप्रकार के है-मूर्त और अमूर्त । इनमें से मूर्त पुद्गल उन्नोस प्रकारके हैं । यथाएक प्रदेशीवर्गणा, संख्यातप्रदेशीवर्गणा,असंख्यातप्रदेशीवर्गणा, अनंतप्रदेशी वर्गणा, आहारवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, तैजसशरीरवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, भाषावर्गणा, अग्रहणवर्गणा, मनोवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, कर्मणशरीरवर्गणा, स्कन्धवर्गणा, सान्तर निरन्तरवर्गणा, ध्रुवशून्यवर्गणा, प्रत्येकशरीरवर्गणा, ध्रुवशून्यवर्गणा, बादरनिगोदवर्गणा, ध्रुवशून्यवर्गणा, सूक्ष्मनिगोदवर्गणा, ध्रुवशून्यवर्गणा और महास्कन्धवर्गणा । इन तेईस वर्गणाओंमेंसे चार ध्रुवशून्यवर्गणाओके निकाल देनेपर उन्नीस प्रकारके पुद्गल होते है
और वे प्रत्येक अनन्त भेदोको लिये हुए है । अमूर्त चार प्रकारके हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और काल | काल घनलोक प्रमाण है शेष एक एक हैं । आकाश अनन्तप्रदेशो है, काल अप्रदेशी है और शेप असंख्यात प्रदेशी हैं ।
[सर्व भावों के अन्तर्गत-शुभाशुभ कर्म प्रकृतियों, पुण्य-पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष इन सबको केवली जानते हैं ।]
शुभ प्रकृतियोंका नाम पुण्य है और अशुभ प्रकृतियोका नाम पाप है। यहां घातिचतुष्क पापरूप हैं । अघातिचतुष्क मिश्ररूप हैं, क्योकि, इन में शुभ और अशुभ दोनो प्रकृतियां सम्भव हैं । मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग ये आत्रव है। इनमेसे मिथ्यात्व पाँच प्रकारका है । असंयम