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अध्याय १ परिशिष्ट ५
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मोक्षका कारण, मोक्षप्रदेश, मुक्त एवं मुच्यमान जीव और पुद्गल, इन सब त्रिकाल विषयक अर्थोको जानता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
भोग और उपभोगरूप घोडा, हाथी, मरिण व रत्न, रूप, सम्पदा तथा उस सम्पदा की प्राप्तिके कारणका नाम ऋद्धि है । तीन लोकमें रहने वाली सब सम्पदाओको तथा देव, अमुर और मनुष्य भवकी सम्प्राप्ति के कारणोंको भी जानता है; यह उक्त कथनका तात्पर्य है । छह द्रव्यों का विवक्षित भावसे ग्रवस्थान और अवस्थानके कारणका नाम स्थिति है । द्रव्यस्थिति, कर्मस्थिति, कार्यस्थिति, भवस्थिति और भावस्थिति श्रादि स्थिति को सकारण जानता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
[ त्रिकाल विषयक सब प्रकार के संयोग या समीपताके सब भेदको जानते हैं:- 1
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके साथ जीवादि द्रव्योंके सम्मेलनका नाम युति है ।
शंका- युति और बन्धमें क्या भेद है ?
समाधान - एकोभावका नाम बन्ध है और समीपता या संयोगका नाम युति है ।
यहाँ द्रव्ययुति तीन प्रकारकी है - जीवयुति, पुद्गलयुति और जीवपुद्गलति । इनमेसे एक कुल, ग्राम, नगर, बिल, गुफा या अटवीमे जीवों का मिलना जी युति है । वायुके कारण हिलनेवाले पत्तोंके समान एक स्थानपर पुद्गलोका मिलना पुद्गलयुति है । जीव और पुद्गलोका मिलना जीव- पुद्गलति है । अथवा जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और प्रकाश इनके एक आदि संयोगके द्वारा द्रव्ययुति उत्पन्न करानी चाहिए । जीवादि द्रव्योंका नारकादि क्षेत्रोंके साथ मिलना क्षेत्रयुति है । उन्ही द्रव्योंका दिन, महिना और वर्ष आदि कालोके साथ मिलाप होना कालयुति है । क्रोध, मान, माया और लोभादिकके साथ उनका मिलाप होना भावयुति है । त्रिकालविषयक इन सब युतियोके भेदको वे भगवान जानते हैं ।